डॉ अजय शर्मा ने प्रो चमन लाल पर उठाए सवाल
कहा - उन्होंने जो राग दरबारी गाया है वह उन्हें अच्छी तरह से गाना आता है
जालंधर: जालंधर (पंजाब) से हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार डा. अजय शर्मा ने कहा है कि शिरोमणि साहित्यकार पर अंगुली उठाते हुए कई तरह का कुतर्क डा. चमनलाल की तरफ से पेश किये जा रहे हैं। उन्होंने जो राग दरबारी गाया है वह उन्हें अच्छी तरह से गाना आता है। उनका तो यह भी मानना है कि जो लेखक 80 के पार हो चुका है उन्हें ही पुरस्काल मिलना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि जिस लेखक ने सत्तर साल तक या उससे कम साल वाले लेखक ने काम किया है उसे इस श्रेणी से बाहर रखा जाना चाहिए। गौरतलब है कि आजकल तो 80 साल की उम्र तक पहुंच पाना भी मुश्किल है। इससे पहले भी उन्होंने ऐसा ही एक पत्र लिखा था जिसमें इसी तरह की बातें की गई थीं। उन्हें तो यह भी लगता है कि चयन कमेटी का गठन गलत किया गया है।
डा. शर्मा ने कहा कि अगर प्रो चमन को ऐसा लगता था तो उन्हें उसी वक्त इस्तीफा देकर अपना रोष प प्रकट करना चाहिए था। लेकिन उन्होंने नहीं किया। सब लोग जानते हैं कि शिव कुमार बटालवी की मौत कम उम्र में हो गई थी तो उन्हें जो भी पुरस्कार मिले वे नहीं मिलने चाहिए थे। चमन लाल को भी तो शिरोमणि हिंदी साहित्यकार पुरस्कार मिल चुका है। क्या उनकी उम्र उस वक्त 80 साल की थी? अगर मैं उनकी उम्र को भूल भी जाऊं तो जहां तक मुझे पता है उन्होंने एक भी रचनात्मक पुस्तक आज तक नहीं लिखी है। उन्हें अगर किंतु परंतु करने का अधिकार है, तो उन्हें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए और बेहतर है सरकार से पूछने की बजाए वह खुद से सवाल करें कि उन्होंने पुरस्कार लेकर कितना शर्मनाक काम किया है। अगर वह अपने गिरेबान में झांकेंगे तो उन्हें खुद ही पता लग जाएगा कि वह तो पुरस्कार के हकदार ही नहीं थे। खैर, उन्होंने अपने पत्र मे यह भी लिखा था कि वह शिरोमणि हिंदी साहित्यकारों की एक लिस्ट घऱ से ही लेकर आए थे जिसमें छह के छह मेंबरों के नाम लिखे हुए थे। यह एक यक्ष प्रश्न है, क्योंकि घर से ही लिस्ट फाइनल करके लाना अपराध की सूचि में आता है और दाल में कुछ काला ही नहीं बल्कि दाल ही काली नजर आती है। बाकी मेंबरस की बात सुने बिना ही आप नाम कैसे फाइनल कर सकते हैं? यह सारा काम पंजाबी, हिन्दी, संस्कृत और उर्दू के साहित्यकारों के सहयोग से ही होता है। उन्होंने तो कमेटी के एक मेंबर पर ही सवाल उठा दिए हैं। शायद वह जानते नहीं वह बहुत ही अच्छे कवि और कहानीकार हैं। बतौर साहित्यकार उनके कई संग्रह छप चुके हैं। समझ में तो यह भी नहीं आता कि चमन लाल को सम्मान घोषित होने के तीन महीने के बाद इस तरह की हरकत करने की क्या सूझी। यह उनके दिमाग की खुराफात के अलावा कुछ भी नहीं है। सुनने में आया है कि वह विश्वविद्यालय में भी इसी तरह की खुराफात किया करते थे। अगर कोई चाहे तो इनका विश्वविद्यालय का पुराना रिकार्ड चेक करवा कर देख सकता है। पूर्व हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रो. रवि ने फेसबुक पर भी यह पोस्ट लिखकर डाला था कि चमनलाल ने अनुवाद के सिवाए कुछ भी नहीं किया। मात्र भगत सिंह पर संपादित पुस्तक ने ही इनका बेड़ा पार लगा दिया। आज इसे 80 साल के साहित्यकार नजर आ रहे हैं। जब यह पुरस्कार मिला था तब भी यह साहित्यकार इस पुरस्कार से वंचित थे। तब इन के अंदर का ईमानदार इंसान कहां सुप्त था। तब तो पुरस्कार पाने के लिए इन्होंने कोई द्वार नहीं छोड़ा। इनकी फितरत है कि हर अच्छे काम की आलोचना करनी है। काश यह आलोचनात्मक प्रवृति साहित्यिक कृतियों पर लागू करते तो कुछ तो इनके अपने पुरस्कार की सार्थतकता सिद्ध हो जाती। मेरा कहने का मतलब केवल इतना है कि इस तरह के बयान देने से पहले अपनी मंजी थल्ले सोटा जरूर मारना चाहिदा है ताकि किसे लई वी परेशानी दा सबब न बन सके।
यहाँ बताया जाता है कि डा. अजय शर्मा शिरोमणि साहित्यकार, पंजाब 2019; सौहार्द पुरस्कार, यूपी सरकार 2019; एचएरडी मिनिस्टरी से उपन्यास कागद कलम न लिखणहार के लिए एक लाख का सम्मान 2017 प्राप्त कर चुके हैं।