दोआबा कॉलेज में डॉ. अजय शर्मा के उपन्यास `कमरा नंबर 909' का विमोचन

दोआबा कॉलेज में डॉ. अजय शर्मा के उपन्यास `कमरा नंबर 909' का विमोचन
दोआबा कॉलेज में उपन्यास कमरा नं. 909 का विमोचन करते हुए प्रिं. डॉ. प्रदीप भंडारी, प्रो. सोमनाथ शर्मा, डॉ. अजय शर्मा, डा. ओमिंदर जोहल व प्रो. संदीप चाहल।

जालन्धर: दोआबा कॉलेज के हिंदी विभाग व हिंदी साहित्य सभा द्वारा देश के प्रसिद्ध हिंदी के उपन्यासकार डॉ. अजय शर्मा- (पंजाब शिरोमणि साहित्य पुरस्कार एवं यूपी साहित्य सम्मान से सम्मानित) के 14वें हिंदी उपन्यास कमरा नंबर 909 का लोकार्पण कालेज के प्रांगण में किया गया। इस मौके पर डॉ. अजय शर्मा, पारुल शर्मा-अंग्रेजी उपन्यासकार उपस्थित हुए। जिनका हार्दिक अभिनंदन प्रिंसीपल डॉ. प्रदीप भंडारी, प्रो. सोमनाथ शर्मा (हिंदी विभागध्यक्ष), डॉ. ओमिंदर जोहल (पंजाबी विभागध्यक्ष) व प्रो. संदीप चाहल-स्टॉफ सैक्रेटरी ने किया।

डा. प्रदीप भंडारी ने कहा कि डॉ. अजय देश के नामवर लेखक हैं जिन्होंने उपन्यास, नाटक, कहानियों और लघु नाटिकाओं के क्षेत्र में अपनी लेखनी की मनोवैज्ञानिक थ्यूरी का इस्तेमाल करके हिंदी लेखन में अपनी वशिष्ट शैली स्थापित की है। कोरोना महामारी के काल में देश का पहला उपन्यास इसी समस्या पर आधारित कमरा नं. 909 लिखकर इस महामारी की भयावहता, इससे जूझने वाले मरीजों की मनोस्थिति , देश में चरमाराये हुए मूलभूत स्वास्थय सेवाओं की बेबसी एवं इंश्योरेंस सेक्टर की मर्जी आदि का सजीव चित्रण किया है।

प्रो. सोमनाथ शर्मा ने कहा, कि समाज में जब चारों तरफ अराजकता फैली हो और अपनों को अपनों से डर लगने लगे तो ऐसे में इस तरह के उपन्यास में कोविड महामारी के शिकार अमीर गरीब, ऊंच नीच, गुरु शिष्य गुरु घंटाल-मूर्ख आदि के द्वारा मार्मिक वृतांत पेश किया है। 

डॉ. ओमिंदर जोहल ने कहा, पंजाब में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में इस समस्या को लेकर किसी भी लेखक द्वारा लिखा गया यह पहला उपन्यास है। इस उपन्यास में बताया गया है कि कोरोना काल ने कैसे रिश्तों का हनन किया है। खुद का खून कैसे सफेद हो जाता है का मार्मिक चित्रण भी इसमें बखूबी मिलता है। 

डा. अजय शर्मा ने बताया जब यह उपन्यास लिखा तो मेरे सामने बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि किसी भी अस्पताल के कमरे में बैठकर पाश्रों का सृजन करना बहुत ही टेढ़ी खीर है। फिर भी मैंने प्रयास किया और उसमें सफल रहा।

प्रो. संदीप चाहल ने बताया कि डॉ. अजय शर्मा ने बखूबी बताया कि हम जीवन में जिंदगी और मौत साथ-साथ लेकर चलते हैं। सांस अंदर आती है तो हम जीते हैं अगर सांस अंदर नहीं आती तो मौत हो जाती है, यही जीवन का चर्क है। इस उपन्यास में लेखक ने ऐसा वातावरण बना रखा है जिससे सोशल डिस्टेंसिंग इमोशनल डिस्टेंसिंग में तब्दील हो गई है।

अंग्रेजी के उपन्यासकार पारुल शर्मा ने बताया कि यह उपन्यास लोकल से गलोबल तक कैसे यात्रा तय करता है इसका दिलचस्प ब्यौरा भी इस उपन्यास में देखने को मिलता है।