समाचार विश्लेषण/छेड़छाड़ कांड की गूंज
-*कमलेश भारतीय
एक फिल्म थी जिसमें दिलीप कुमार अनुपम खेर को थप्पड़ मारते हैं और अनुपम खेर कहते हैं इसकी गूंज तुम सुनोगे । अब हरियाणा के खेलमंत्री व हाॅकी टीम के सफल कप्तान रहे संदीप सिंह भी ऐसी ही गूंज सुन रहे हैं । छोटी सी बात तो नहीं थी कि एक माननीय मंत्री एक महिला कोच को कोठी बुलाये और ऐसी कंफर्ट जगह बिठाये कि उसे छेड़ पाये । इतना किया कि महिला कोच ने विरोध किया और धक्का देकर भाग निकली । इस दुर्घटना को बयान करने वह उपमुख्यमंत्री , गृह मंत्री तक पहुंची लेकिन नोटिस नहीं की गयी । जैसे दरबार में कोई आम लड़की आई हो और अनसुनी ही वापिस भेज दी गयी । गृहमंत्री से तो तीन घंटे बाद भी किसी ने मिलने न दिया । अब गृहमंत्री उसकी व्यथा कथा सुन रहे हैं । महिला कोच ने हिम्मत न हारी बेताल की तरह और पुलिस स्टेशन तक पहुंची । शिकायत दर्ज करवाई । धन्य है महिला आयोग जो आज तक शिकायत की राह देख रहा है । इससे क्या उम्मीद कीजै? कोई उम्मीद नहीं । शोभा का पद है । बने रहिए ।
अब इतनी किरकिरी के बाद संदीप सिह ने खेल विभाग मुख्यमंत्री को सौंप दिया । यानी सीधे त्यागपत्र नहीं दिया बल्कि यह कहा कि मैं जांच प्रभावित न हो इसलिए यह विभाग छोड़ रहा हूं । कितने ऊंचे विचार हैं आपके ! सदके जाऊं आपके ! आखिर एक महिला कोच के साथ चैटिंग की क्या मजबूरी रही और समय से पहले ही उसकी एक्पवायंटमेंट की सूचना किसलिए दी ? क्या आपने अपने विभाग की गोपनीयता भंग नहीं की ? शपथ क्या थी कि गोपनीयता बनाये रखूंगा और किया क्या ? इतनी किरकिरी के बाद भी न तो मुख्यमंत्री ने इस्तीफा मांगा और न ही संदीप सिंह ने इस्तीफा दिया । इसीलिए महिला कोच कह रही है कि जब तक मंत्री महोदय इस्तीफा नहीं देंगे , तब तक जांच में शामिल नहीं होऊंगी ! तब कैसी इकतरफा जांच होगी ? एसआईटी गठित करने की कोई मांग नहीं थी , कर दी गयी । इस सबके बीच संदीप सिंह पर केस दर्ज हो गया है और विपक्ष कह रहा है कि मंत्री को गिरफ्तार किया जाये । यह दो तरह के कानून कैसे ? किसी आम आदमी को तो जेल के अंदर करने में देर नहीं लगती और एक मंत्री पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं ?
वह एक छोटी सी कहानी है रवींद्र नाथ टैगोर की -जब राजा को ऐसी ही छेड़छाड़ की सूचना दी जाती है तो राजा कहता है कि कार्यवाही करो लेकिन जब बताया जाता है कि युवराज ने यह कांड किया है तब कहते हैं कि नियम देखो , क्या है ! अब यही हो रहा है । अब नियम खंगाले जा रहे हैं । और महिला कोच भी वर्णिका की तरह न्याय मांगती ही न रह जाये ! देर न हो जाये कहीं देर न हो जाये ! न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए न कि आश्वासन का झुनझुना ही पकड़ा दिया जाये !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।