समाचार विश्लेषण/लखीमपुर खीरी का असर अभी बाकी
-*कमलेश भारतीय
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों के साथ हुई बरबर्तापूर्ण घटना का असर अभी बाकी है और जारी है वहां नेताओं का जाना । तीस घंटे की जद्दोजहद के बाद प्रियंका गांधी और राहुल गांधी को सफलता मिली वहां जाकर किसान परिवारों को सान्त्वना देने की । पंजाब व छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने इन परिवारों को चहपचह पचास लाख रुपये देने की घोषणा की । इस प्रतिनिधिमंडल में दीपेंद्र हुड्डा को भी जगह मिली जो इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि यह युवा नेता प्रियंका गांधी की तरह ही सीतापुर रेस्ट हाउस में हिरासत में रखा गया था । यदि इसे प्रतिनिधिमंडल में शामिल न करते तो बहुत बड़ा अन्याय होता ।
इनके बाद सचिन पायलट और प्रमोद कृष्णन् ने भी लखीमपुर जाना चाहा लेकिन उन्हें भी हिरासत में ले लिया गया। हरियाणा से सुश्री सैलजा , भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अनिल बंसल ने भी कोशिश की लेकिन इन्हें एक निश्चित दूरी पर रोक लिया गया और इन लोगों ने वहीं धरना शुरू कर दिया । अभी तक अखिलेश यादव पहुंचे नहीं । वैसा सवाल यह उठ रहा है कि क्या लखीमपुर खीरी किसान आंदोलन का नया केंद्र बनने जा रहा है ? यदि हां कहा जाये तो इसमें उत्तर प्रदेश सरकार का ही योगदान है । यदि आप सबको जाने देते तो मामला इतना न बढ़ता लेकिन आपने तो यह शोर मचा दिया कि किसी भी राजनीतिक सैलानी को लखीमपुर खीरी न जाने देंगे और'तीन दिन में जैसे विपक्ष को रोका उससे लखीमपुर खीरी और ज्यादा चर्चा में आया । यदि सरकार थोड़ा संयम से काम लेती और विपक्ष को जाने देती तो मामला अब तक काफी हद तक संभाल लिया जाता ।
ऊपर से केंद्र सरकार ने भी केंद्रीय राज्य गृहमंत्री मिश्रा को दिल्ली तलब जरूर किया लेकिन इस्तीफा नहीं मांगा । जब एफ आई आर में पिता पुत्र का नाम शामिल है फिर इन्हें इतनी छूट किसलिए ? हर बार भाजपा यही करती है कि इस्तीफा नहीं लेंगे , विपक्ष का दवाब नहीं मानेंगे । आप याद कीजिए जब हरियाणा भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सुभास बराला के बेटे विकास ने एक युवती का कार से आधी रात को पीछा किया था तब भी सुभाष बराला से इस्तीफा नहीं लिया गया था । दवाब की राजनीति नहीं मानती भाजपा । यह साबित होता है । अब भी बदनामी तो झेल लेगी लेकिन मिश्रा का इस्तीफा नहीं लेगी । है न कमाल ?
लखीमपुर खीरी के बाद अगर चर्चा में है तो जम्मू कश्मीर जहां कल फिर एक महिला प्रिंसिपल सुपेंद्र कौर व हिंदू टीचर दीपक चंद को गोलियों से छलनी कर दिया गया । सज़ा इसलिए कि पंद्रह अगस्त को तिरंगा फहराया था स्कूल में और बच्चों को सलाम करने को कहा गया था । इसके पीछे वही पंडितों की सम्पत्ति पर कब्जा जमाने की कोशिश बताई जा रही है । अल्पसंख्यकों को आईडी चैक कर मौत दी गयी । कितनी दुर्भाग्यपूर्ण घटना है यह । मेडिकल हाॅल चलाने वाले माखन लाल बिंदरू के बाद यह कांड किया गया । बेटी की ललकार के बावजूद आतंकवादी नहीं सुधरे और शायद न सुधारेंगे ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।