लघुकथा/एक पेड़ की कहानी/मनोज धीमान
तपती दोपहर थी। सूर्य अपने शिखर पर था। आसमान से आग बरस रही थी। धरती भी बुरी तरह जल रही थी। एक राहगीर पैदल ही अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहा था। गला सूखा हुआ था। अब चलना भी कठिन हो रहा था। किसी जगह की तलाश में था जहाँ बैठ कर दो घड़ी आराम कर सके। तभी उसकी नज़र एक पेड़ पर पड़ी। वह उसी ओर हो लिया। पेड़ के पास पहुँच कर उसने वहीं कुछ देर रुक कर आराम करने के बारे में विचार किया। उसने अपना सामान वहीं रखा और पेड़ के नीचे बैठ गया। पेड़ की छाया तो थी। मगर फिर भी सूर्य की रोशनी उस पर पड़ रही थी। उसने मन ही मन सोचा - काश! पेड़ उसे मुक़्क़मल छाया दे पाता। यही सोचते हुए वह नींद की आगोश में चला गया। पेड़ ने उसके मन की बात जान ली। उसे राहगीर पर तरस आ गया। वह इस हद तक झुक गया कि राहगीर को उसकी मुक़्क़मल छाया मिल सके। कुछ समय बाद राहगीर की आँख खुली। उसने देखा कि उसके चारों तरफ मुक़्क़मल छाया थी। पेड़ काफ़ी झुका हुआ था। झुके पेड़ को देख कर उसने सोचा कि यह तो कभी भी गिर सकता है। उसने अपना थैला उठाया। आरी निकाल कर पेड़ को काटना शुरू कर दिया।