चुनाव समाप्त: कहा सुना माफ 

चुनाव समाप्त: कहा सुना माफ 

-*कमलेश भारतीय
सात चरणों का लम्बा लोकसभा चुनाव आखिरकार आज पंजाब, हिमाचल आदि में मतदान के साथ ही खत्म होने जा रहा है। ‌वामन ने तो तीन डग में ही धरती आकाश सब नाप दिया था लेकिन हमारे लोकतंत्र को देश भर में सात चरण रखने पड़े तब कहीं जाकर यह लोकतंत्र का महापर्व संपन्न होने जा रहा है। इसमें नेताओं ने आपस में बहुत कुछ कहा और बहुत आरोप प्रत्यारोप लगाये। कहते हैं कि युद्ध में सब कुछ जायज है। जैसे महाभारत में सब कुछ धर्म या अधर्म जायज था, वैसे ही चुनाव में भी सब कुछ जायज माना गया। ‌महाभारत में न नीति, न अनीति, न कुछ और, बस, चिड़िया की  आंख की तरह विजय ही विजय दिखती थी न कि कोई परंपरा, विचारधारा या कुछ और। ‌बस, विजय ही परमोधर्म, विजय ही मंजिल। ‌विजय ही एकमात्र लक्ष्य। ‌इसीलिए जनसभाओं का नाम भी विजय संकल्प रैलियां रखा गया, जो हिसार में बड़े नेता के आगमन पर महाविजय रैली में बदल गयी। ‌एक तरफ जवानों, किसानों और खिलाड़ियों के गुणगान तो दूसरी तरफ  अग्निवीर और किसान आंदोलन व जंतर मंतर पर महिला पहलवानों के धरने की चर्चा रही। अपने अपने दावे, अपने अपने वादे। ‌अपनी-अपनी गारंटियां और अपनी अपनी चेतावनियां। ‌यदि हम नहीं आये तो संविधान और लोकतंत्र खतरे में पड़ जायेगा और दूसरी ओर से कहा गया कि यदि हम नहीं आये तो भ्रष्टाचार आ जायेगा और देश लूट कर खा जायेंगे। ‌वैसे अपने सोने की चिड़िया को बहुत शुरू से ही लूट-लूट कर खाते रहने की बातों से सारा इतिहास भरा पड़ा है। ‌कभी मुगल तो कभी सिंकदर तो कभी मोह्म्मद गौरी से लेकर ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर क्या कहूँ, कौन कौन सी कम्पनियां अभी तक यह लूट जारी रखे हुए हैं। एक कहता है कि दूसरे लूट कर खा जायेगे तो दूसरा कहता है कि रेल, एयरपोर्ट और न जाने क्या क्या बेच दिया तो दूसरा कहता है कि ये पीओ के दे देंगे। ‌एक से बढ़कर एक आरोप प्रत्यारोप। ‌अब जाकर एक ध्यान लगाने चले गये तो दूसरा किसी विदेश यात्रा पर हर बार की तरह निकल लेगा। ‌चार जून को जो होगा, देखा जायेगा। ‌
ये दिन भी क्या दिन थे जब प्रत्याशी अपने हाथों चाय छान छान कर पिला रहे थे, खेतों में फसल काटने में प्रत्याशी मदद करने दौड़ रहे थे, और‌ तो‌ और अनाज से भरी बोरी तक उठाने में आगे आ रहे थे। ‌रोड शो के नाम पर रोज़गार दे रहे थे और पार्टी दफ्तरों में खुले लंगर चल‌ रहे थे।  हाय! कहां गये वे दिन? कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, वो मेरे प्यारे पल छिन। ‌वैसे हरियाणा के मतदाता दुखी न हों, बस, चार महीने बाद फिर यही मेले, रेले  रैलियां और लंगर होंगे। ‌लूट सके तो‌ लूट। ‌अबकि बार रह गये, फिर  पछताना पड़ेगा । ‌ 
चार दिनों की चांदनी ! 
फिर अंधेरी रात !! 

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी