समाचार विश्लेषण/देख भाई देख, टीआरपी का खेल
-कमलेश भारतीय
बाबू जी , क्या क्या नहीं हो सकता ? परीक्षाओं में नकल हो सकती है । नौकरियों में सिफारिश चल सकती है और नेताओं के झूठ का सागर फैलता जा सकता है तो टीवी चैनल की टीआरपी क्या नकली तरीके से बढ़ाई नहीं जा सकती ? यदि मुम्बई पुलिस की छानबीन को सच मानें तो यह करिश्मा भी हो गया । पूछता है भारत कि कैसे हो गया अर्णब गोस्वामी जी और आप बिना जवाब दिये गाड़ी भगा ले जाते हो ? क्यों ? चीख चीख कर पूछता है भारत कि यह टीआरपी का खेल कैसे चलाया ? कितने पैसे बांटे और घरों में हर समय आपका ही चैनल चला कर छोड़ दिया । इसी के पैसे दिए ? यह पत्रकारिता की शर्मनाक स्थिति कर दी आपने । इसे पत्रकारिता कहते हो आप ? कूद कूद कर गालियां देना । पुलिस को बुरा भला कहना और डिबेट के लिए आमंत्रित मेहमानों को कुछ बोलने न देना या धमकाते जाना । यह कैसी पत्रकारिता ? आप ही सीबीआई, ईडी और एनसीबी सब बन बैठे ? देश में कोई नियम कानून है या नहीं या मीडिया इन कानूनों से ऊपर है ? कैसे आपके रिपोर्टर रिया चक्रवर्ती, दीपिका पादुकोण, सारा अली खान और रकुल प्रीत सिंह आदि के पीछे सवार का जवाब दो चिल्लाते रहते थे ? यह कैसी पत्रकारिता ? आप ही हाईकोर्ट , आप ही सुप्रीम कोर्ट और आप ही थाने कचहरी की भूमिका निभाने लगे ? अब पुलिस ने आपके साथ मिलीभगत करने वाले दो मराठी चैनलों के संचालकों को गिरफ्तार कर लिया है । पूछता है भारत आपकी क्या भूमिका रही इसमें ? बताइए । यह किस पैमाने पर टीआरपी खरीदने चले थे ? पूछता है भारत चीख चीख कर कि पत्रकारिता की गरिमा के साथ खिलबाड़ क्यों किया? सीधे सीधे दूसरे चैनल को चुनौती देते रहे कि आपसे आगे । सबसे आगे । आज तक ने भी अब खूब खिल्ली उड़ाई । पर यह स्थिति पूरे मीडिया के लिए शर्मनाक है । इससे बचना चाहिए । आम जनता का विश्वास न खो देना । सबसे बड़ा यही खतरा है । मीडिया का एक ही आधार है वह है विश्वसनीयता । जिस दिन यह विश्वास खत्म हो गया उस दिन यह टीआरपी कभी हाथ नहीं आएगी । संभल जाओ सभी मीडिया वालों । आम जनता का विश्वास बनाये रखो ।