इमरजेंसी, कंगना और विवाद
-*कमलेश भारतीय
बहुत बार कहा, आज भी कहता हूँ -कंगना और विवाद का बड़ा गहरा और प्यारा सा नाता है । कह सकते हैं कि जहां कंगना, वहां विवाद और जहां विवाद, वही कंगना। अभी सुरक्षाकर्मी कुलविंदर कौर के विवाद को थमे ज्यादा दिन नहीं हुए कि 'इमरजेंसी' फिल्म को लेकर विवादों के घेरे में आ गयी हैं कंगना, भाजपा की नयी नवेली सांसद। इस विवाद से भी पहले देश को असली आज़ादी सन् 2014 में मिली , कहकर विवादों में फंसी रहीं और उसके बाद तो और भी कमाल का बयान आया कि भारत के पहले प्रधानमंत्री सुभाष चंद्र बोस थे । इसका मतलब यही है कि कंगना विवादो़ं की क्वीन हैं और विवादों के बिना जी नहीं सकतीं। किसी न किसी बात को लेकर विवादों में घिरी रहती हैं, कंगना।
अब सबसे ताज़ा विवाद इनकी नयी फिल्म 'इमरजेंसी' को लेकर शुरू हुआ है, जिसमें कंगना ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का किरदार निभाया है और पंजाब की बड़ी संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के निशाने पर आ गई हैं। कमेटी ने फिल्म निर्माताओं को कानूनी नोटिस भेजा है, जिसमें कंगना समेत फिल्म के निर्माताओं से सार्वजनिक और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर जारी ट्रेलर को हटाने और सिख समुदाय से लिखित माफी मांगने को कहा गया है। आरोप यह है कि फिल्म में सिखों के इतिहास व चरित्र को गलत तरीके से पेश किया गया है। कमेटी की ओर से कानूनी सलाहकार अमनबीर सिंह स्याली ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की है। इसे लेकर पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में भी मोहाली के गुरिंदर सिंह व जगमोहन सिंह ने जनहित याचिका दायर की है । इस तरह कंगना एक नये विवाद में फंसती नजर आ रही है ।
जहां तक फिल्म की बात है, इसके प्रदर्शन के बाद शायद कांग्रेस को भी इंदिरा गांधी की भूमिका पर कोई आपत्ति हो ! पहले यही काम अनुपम खेर करते रहे, जब फिल्म बनाई 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' और इसे चुनाव के बाद पर्दे पर आने का अवसर मिला था क्योंकि कांग्रेस ने चुनाव प्रभावित होने की बात कोर्ट में रखी थी । चाहे अनुपम खेर हों या कंगना, ऐसे फिल्मकार सिर्फ एक विशेष समुदाय या दल को खुश करने या विचारधारा को आगे बढ़ाने का ही प्लेटफार्म बना रहे हैं, जिससे इनका मकसद साफ है, राजनीतिक फायदा या अवसर पाना। ऐसी ही विवादास्पद फिल्म आई थी-कश्मीर फाइल्स।
हर कोई मनोज कुमार तो नहीं है, जो पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नारे 'जय जवान, जय किसान' पर 'उपकार' जैसी फिल्म बनाने का दम रखते हो। आज भी मनोज कुमार और उनके भारत के रोल याद किये जाते हैं । अक्षय कुमार ने भी टायलेट जैसी फिल्म बनाई लेकिन औंधे मुंह गिरी। फिल्म निर्माण और किसी राजनीतिक दल की विचारधारा को फैलाना, ये अलग क्षेत्र हैं। जब जब इन्हें एक किया जाता है, तब तब विवाद सामने आते हैं। राणा गन्नौरी कहते हैं :
ख़ुद तराशना पत्थर और ख़ुदा बना लेना
आदमी को आता है क्या से क्या बना लेना
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।