धुन के पक्के होते हैं स्टार्टअप शुरू करने वाले युवा
आईआईटी से डिग्री लेने वाले युवा ज्यादातर अपना काम करना पसंद करते हैं। यदि दस लाख रुपये तक का बिजनेस शुरू करना हो अथवा मौजूदा बिजनेस का विस्तार करना हो तो उसके लिए सरकार का मुद्रा लोन एक बेहतर जरिया हो सकता है।
आईआईटी बॉम्बे ने अपने स्टूडेंट्स के रहन सहन और आदतों का एक सर्वे कराया तो कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आईं, जैसेकि 56 प्रतिशत स्टूडेंट सोशल मीडिया पर एक घंटे से भी कम समय बिताते हैँ और 80 प्रतिशत स्टूडेंट सिगरेट नहीं पीते। आज के समय में ये दोनों चीजें ऐसी हैं जो युवाओं के बीच सबसे ज्यादा पाई जाने की संभावना रहती है। सोशल मीडिया को समय न देने के पीछे तो कारण यह हो सकता है कि उन्हें अपनी पढ़ाई के बीच समय ही कम मिलता हो, जिसकी वजह से 50 प्रतिशत स्टूडेंट तो रोज नहाते भी नहीं। लेकिन धूम्रपान न करने के पीछे जागरूकता एक कारण हो सकती है। दरअसल, सेहत के लिए सबसे बुरी आदतों में सबसे ऊपर है तम्बाकू का किसी भी रूप में सेवन। पहले के छात्रों के बीच सिगरेट बहुत लोकप्रिय हुआ करती थी, क्योंकि इसे वे तनाव खत्म करने का एक उपाय मानते थे और ऐसा करने पर वे खुद को कूल भी साबित करना चाहते थे। इन बातों से एक बात तो साफ होती है कि आईआईटी से निकले युवाओं को यूं ही खास दर्जा नहीं दिया जाता। आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट तो सचमुच में ही कसके पढ़ाई में डूबे रहते हैं। भई वाह। अच्छी बात है।
धूम्रपान को लेकर न्यूजीलैंड की सरकार बेहद सख्त हो गयी है। वहां की सरकार देश से धूम्रपान को पूरी तरह से समाप्त करने का मन बना चुकी है और इसके लिए नया कानून लाने वाली है। न्यूजीलैंड ने वर्ष 2025 तक धूम्रपान दर को 5 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य बनाया है। वहां 2008 या उसके बाद जन्मे लोग अगले साल से सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पाद नहीं खरीद सकेंगे। तम्बाकू की वजह से हर साल 80 लाख लोगों की मौत होती है। इनमें 12 लाख ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो खुद तम्बाकू का सेवन नहीं करते, न ही सिगरेट पीते हैं, लेकिन जो ऐसा करने वालों के साथ रहते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, विश्व में 1.3 अरब लोग धूम्रपान अथवा तम्बाकू वाले अन्य उत्पादों का प्रयोग करते हैं, जैसे कि गुटखा चबाना। पान और गुटखा खाने के बाद लोग थूकते बहुत हैं। भारत में सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर रोक लागू है। इसक बावजूद लोग हैं कि मानते नहीं। इधर-उधर थूकते रहते हैं। इससे सरकारी भवन ही नहीं, रेलवे भी परेशान है। थूक के दाग मिटाने के लिए रेलवे को हर साल 1200 करोड़ रुपये धनराशि खर्च करनी पड़ती है। पानी की बर्बादी होती है सो अलग। गुटखा चबाकर थूकने वालों की सहूलियत के लिए देश के 42 स्टेशनों पर स्पिटर कियोस्क लगाये जा रहे हैं, जहां स्पिटून पाउच मिलेंगे।
आईआईटी से डिग्री लेने वाले युवा ज्यादातर अपना काम करना पसंद करते हैं। यदि दस लाख रुपये तक का बिजनेस शुरू करना हो अथवा मौजूदा बिजनेस का विस्तार करना हो तो उसके लिए सरकार का मुद्रा लोन एक बेहतर जरिया हो सकता है। मुद्रा योजना का लाभ उठाने के लिए बैंकों या कर्ज देने वाले संस्थानों को कोई गारंटी देने की जरूरत नहीं होती और न ही कोई प्रोसेसिंग फीस लगती है। माइक्रो यूनिट्स डवलपमेंट एंड रीफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) यह लोन जारी करती है। मुद्रा लोन लेने के लिए भारत का नागरिक होना पहली शर्त है। इसमें 50 हजार, पांच लाख और दस लाख तक लोन के तीन स्लैब हैं, जो अलग-अलग श्रेणी के व्यवसाइयों को दिये जाते हैं।
(लेखक नरविजय यादव वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)