गुटबाजी कांग्रेस का दूसरा नाम?
-*कमलेश भारतीय
क्या गुटबाजी कांग्रेस का दूसरा नाम है ? अब सिरसा से सांसद सुश्री सैलजा ने इस बात को स्वीकार करते कहा है कि यदि कांग्रेस में गुटबाजी नहीं होती तो हरियाणा की दस की दस सीटें जीतते। पहली बार गुटबाजी को स्वीकार करते कहा है कि पार्टी में गुटबाजी है और होती भी है, लेकिन पार्टी को देखना चाहिए कि आगे आने वाले विधानसभा में नुकसान न हो। इस पर गौर करने की जरूरत है। सुश्री सैलजा ने कांग्रेस संगठन को लेकर भी कहा कि संगठन होना चाहिए और हमारा कार्यकर्ता पद का मोहताज नहीं है लेकिन संगठन होता तो हरियाणा में परिणाम कुछ और होता। यह पहली बार है जब गुटबाजी को स्वीकार किया जबकि आमतौर पर कांग्रेस नेता पार्टी एकजुट है, कहकर इस सवाल को टाल देते हैं बल्कि सुश्री सैलजा का भी जवाब होता था कि सभी अपनी अपनी तरह से पार्टी को मजबूत कर रहे हैं। अब जाकर कहीं वह सच स्वीकार किया जो जनता ने साफ साफ बताया है लोकसभा चुनाव में, जो दिखता भी है और आमजन समझता भी है, नहीं समझते तो कांग्रेस के बड़े नेता नहीं समझते। चुनाव परिणाम घोषित होते ही कैप्टन अजय यादव ने कहा कि यदि वे गुरुग्राम से कांग्रेस प्रत्याशी होते तो परिणाम अलग होता। इसी बयान से अंदाजा लग जाता है कि उन्होंने राज बब्बर के लिए कितना काम किया होगा या उनसे राज बब्बर को कितनी सहायता मिली होगी।चुनाव परिणाम की घोषणा से पहले हिसार से कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश ने भी भितरघात की आशंका जाहिर की थी लेकिन वे सौभाग्यशाली रहे कि उचाना में जीत कर निकले। आश्चर्यजनक रूप से आदमपुर में भी जीते, जिसके नेता कुलदीप बिश्नोई ने बयान दिया था कि जयप्रकाश को हमारी तीन तीन पीढ़ियों ने जयप्रकाश को हरा रखा है और अब जयप्रकाश ने चौ देवीलाल की दो-दो पीढ़ियों को एकसाथ हरा दिया। ससुर चौ रणजीत चौटाला और दोनों बहुओं नैना चौटाला और सुनैना चौटाला को हार का मुंह देखना पड़ा। वैसे पूरे चौटाला परिवार को ही लोकसभा चुनाव में हार झेलनी पड़ी। कुरूक्षेत्र से अभय चौटाला भी नवीन जिंदल से हारे। इस तरह चौटाला परिवार को भी अपनी पारिवारिक गुटबाजी या कहिये लड़ाई का खामियाजा भुगतान पड़ा है और यह समय चौटाला परिवार के भी मंथन का समय है कि विधानसभा चुनाव कैसे लड़ना है। वैसे भाजपा प्रत्याशी चौ रणजीत चौटाला भी यह बात कह रहे हैं कि कुछ नेताओं ने भितरघात किया और वे पार्टी हाईकमान को इसकी रिपोर्ट देकर उनकी क्लास लगवायेंगे। यानी अब अनुशासित कही जाने वाली पार्टी भाजपा भी भितरघात जैसी बीमारी से जूझ रही है । यह भी अछूती नहीं रही गुटबाजी से। जब से भाजपा कांग्रेसमय होने लगी है तब से इसमें कांग्रेस जैसी समस्यायें भी आने लगी हैं क्योंकि कांग्रेस नेता अपने गुण साथ लेकर ही भाजपा में आते हैं। विधानसभा चुनाव तक दीपक बावरिया का कहना है कि संगठन बनाने की कोशिश करेंगे। जब चुनाव लड़ने की रणनीति बनाने का समय है तब संगठन बनाने का समय कहां मिलेगा? इतना ही कहेंगे :
एक ईट क्या गिरी मेरे मकान की
लोगों ने आने जाने का रास्ता बना लिया!
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।