समाचार विश्लेषण/परिवारवाद और भारतीय राजनीति
-*कमलेश भारतीय
आज समाचार बता रहे हैं कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने अपने विधायक बेटे उदयनिधि स्टालिन को मंत्री बना दिया और इसके साथ ही वंशवाद , परिवारवाद का मुद्दा फिर चर्चा में आ गया है । मज़ेदार बात यह है कि उदयनिधि के मंत्रिमंडल में शामिल होते ही डीएमके परिवार के सात सदस्य परिवारवाद में शामिल हो गये । है न कीर्तिमान !
लो जी हम आपको परिवारवाद की कथा सुनाते हैं ! वैसे हमारे हरियाणा के चौ देवीलाल के परिवारवाद के कीर्तिमान को डीएमके नहीं तोड़ पायेगी ! आजकल इसी परिवार के दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री हैं तो चौ रणजीत सिंह विद्युत मंत्री हैं । नैना चौटाला भी विधायक हैं । अभय चौटाला विधायक हैं । इनके पिता ओमप्रकाश चौटाला पूर्व मुख्यमंत्री रहे तो डाॅ अजय चौटाला पूर्व सांसद रहे । अब वे जजपा के संस्थापक हैं । अभी नयी पीढ़ी के कर्ण चौटाला जिला परिषद में चुने गये । इस तरह शायद सबसे ज्यादा बड़ा कीर्तिमान परिवारवाद का तो चौटाला परिवार के नाम ही है । चौ बीरेन्द्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह हिसार से भाजपा सांसद हैं और धर्मपत्नी भी उचाना से पूर्व विधायक रही हैं । पंजाब के बादल परिवार के बिना भी वंशवाद की कहानी अधूरी रहेगी । प्रकाश सिंह बादल , सुखबीर सिंह बादल और सिमरन तक यह कहानी चलती आई । भतीजे मनप्रीत बादल और प्रकाश सिंह के भाई भी रहे राजनीति में ! प्रकाश सिंह बादल पांच बार मुख्यमंत्री बन पाये । बनाया रिकॉर्ड!
कांग्रेस की ओर आइए । पंडित जवाहरलाल नेहरु , इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तीन तीन प्रधानमंत्री एक ही परिवार से , यह रिकाॅर्ड गांधी नेहरु परिवार के नाम , जिसका टूटना काफी मुश्किल । यदि मुलायम सिंह यादव ने अड़ंगा न लगाया होता तो सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन गयी होतीं ! अभी सोनिया गांधी और राहुल गांधी सांसद हैं । वैसे मेनका गांधी और वरूण गांधी भी सांसद हैं । कभी अरूण नेहरु भी सांसद रहे और विजयलक्ष्मी भी राजनीति में सक्रिय रहीं । परिवारवाद का आरोप भी गांधी परिवार से ही शुरू हुआ ।
मज़ेदार बात यह भी कि उत्तर प्रदेश मे मुलायम सिंह यादव , शिवपाल सिंह यादव , अखिलेश यादव , डिम्पल यादव सभी परिवारवाद के अच्छे से जाने जाते हैं । अपर्णा यादव को अभी खाता खोलना है । हेमवतीनंदन बहुगुणा , विजय बहुगुणा और रीता बहुगुणा कैसे परिवारवाद से बाहर माने जा सकते हैं ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परिवारवाद के कटु आलोचक जरूर हैं लेकिन भाजपा में बढ़ रहे परिवारवाद पर उनका कोई बस नहीं चल रहा । फिर चाहे सिंधिया राजे परिवार हो , राजनाथ सिंह के बेटे हों या फिर प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर हों । भाजपा ने चौ भजनलाल के परिवार को भी अपनाया । पांचवे सदस्य विधानसभा में पहुंचे भव्य बिश्नोई । दादा चौ भजनलाल मुख्यमंत्री रहे , दादी जसमा देवी , ताऊ चंद्रमोहन , पिता कुलदीप बिश्नोई , मां रेणुका बिश्नोई और अब खुद भव्य बिश्नोई विधायक बने । वैसे दूड़ाराम बिश्नोई भी इसी परिवार से हैं । कम नहीं परिवारवाद में बिश्नोई परिवार भी । यह भाजपा के परिवारवाद के विरोध का नया उदाहरण है । हुड्डा परिवार से चौ रणबीर सिंह हुड्डा के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अब दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी मैदान में हैं । हिमाचल में वीरभद्र सिंह , उनकी धर्मपत्नी प्रतिभा सिंह और बेटा विक्रमादित्य सभी परिवारवाद की किताब के स्वर्ण उदाहरण ।
यदि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के परिवारवाद की कहानी न कही तो फिर क्या कहा ! वे खुद मुख्यमंत्री न बन पाये तो घर में रसोई में परिवार के लिए खाना बना रही अपनी धर्मपत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने में देर नहीं लगाई । भाई साधु के बाद जब बच्चे तेजस्वी आदि बड़े हुए तो क्रिकेट के मैदान से पकड़कर ले आये राजनीति में ! आजकल तेजस्वी उपमुख्यमंत्री हैं और चचा नीतिश कुमार संकेत दे रहे हैं कि अगले विधानसभा चुनाव तेजस्वी मुख्यमंत्री के चेहरे हो सकते हैं ! है न परिवारवाद का अनुपम उदाहरण और अनुपम परिवार !
मुम्बई में बाल ठाकरे खुद तो राजनीति से दूर रहे लेकिन सत्ता बनवाने और सत्ता पलटने के जादूगर रहे लेकिन किंग मेकर की भूमिका तक सीमित रहे । उनके बेटे उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने और पोता आदित्य विधायक । यदि सरकार पूरे पांच साल निकाल पाती तो निश्चित ही आदित्य देर सबेर में मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ाते ! शरद पवार ने बेटी सुप्रिया को आगे बढ़ाया । ठाकरे परिवार से राज ठाकरे भी अलग दल बना कर ताल ठोक रहे हैं । सुनील दत्त की बेटी प्रिया दत्त को कांग्रेस आगे लाई तो भाजपा प्रमोद महाजन की बेटी पूनम को । दिल्ली में मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भी राजनीति मे हैं ।फिर किसे दोष देते हो प्रधानमंत्री जी परिवारवाद का ? समरथ को नहिं दोष गोसाईं ! हर चुनाव में कांग्रेस को परिवारवाद के लिए कोसते समय कभी अपनी पार्टी के परिवारवाद की ओर ध्यान ही नहीं जाता !
भारतीय राजनीति में यह परिवारवाद और वंशवाद की बेल अमरबेल है । इसे बढ़ने , फलने और फूलने से कोई नहीं रोक सकता !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।