पितृ दिवस: बहुत याद आते हैं पिता
-*कमलेश भारतीय
आज पितृ दिवस है। वैसे तो हर दिन पितृ और मातृ दिवस से कम नहीं होता लेकिन खास याद के लिए ये अलग अलग दिवस बना दिये गये हैं और इसी बहाने हम अपने माता पिता को याद कर लेते हैं। मेरा दुर्भाग्य कि मुझे अपने पिता को छोटी उम्र में ही खो देना पड़ा। फिर भी उनका सुबह सवेरे तारों की छांव में जाग जाना, अपने जूते पालिश करना, साइकिल साफ करना और नहा धोकर उर्दू में लिखी श्रीमद्भगवद्गीता को बांचना कभी नहीं भूलता। फिर वे सबके लिए चाय बना कर हमें उठाते। संयोग देखिये कि ये आदतें मुझमें आ गयीं। सुबह सबसे पहले उठना, नहाना धोना और फिर भगवान् से दो बातें कर, सबके लिए चाय बनाना।
ये संस्कार सब बच्चों को सबके पिता ही देते हैं। अकेले मुझे ही नहीं मिले। सबके पिता बच्चों को कुछ न कुछ बड़ा देखना चाहते ही नहीं, बनाना भी चाहते हैं। पिता की इच्छा होती है कि मेरी संतान मुझसे भी आगे निकल जाये। मुझसे बड़े पद पर पहुंचे और मेरी तपस्या सफल हो जाये। कितने उदाहरण आज समाचारपत्रों में हैं। हरियाणा की तीन आईएएस बहनों केशनी आनंद अरोड़ा, मीनाक्षी आनंद चौधरी और उर्वशी गुलाटी का उदाहरण सामने हैं जिनके पापा राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक थे लेकिन अपनी तीनों बेटियों को आईएएस देखना चाहते थे और यही नहीं ये तीनों बहनें हरियाणा की मुख्य सचिव पद तक भी पहुंचीं। दो बहनों मीनाक्षी और उर्वशी से एक रिपोर्टर के रूप में मुलाकातों का सिलसिला भी रहा। ये बहनें समय की बहुत पाबंद रहीं। एक बार मुझे हरियाणा सचिवालय में मीनाक्षी से मुलाकात कर रिपोर्ट बनानी थी कि मैं निर्धारित समय से पांच सात मिनट लेट हो गया। मीनाक्षी ने घड़ी पर नज़र टिकाई तो बताया कि पास बनने में देरी हुई। फिर कहीं वे मुस्कुराईं। उर्वशी जब कभी हिसार आतीं तो जरूर गेस्ट हाउस बुला कर कोई न कोई खबर बनवा देतीं। साहित्य के प्रति भी लगाव रहा। पंजाब के होशियारपुर के दो भाइयों का जिक्र भी आ रहा है -संजीव कोशल और सर्वेश कौशल। दोनों आईएएस और सर्वेश जहां पंजाब के मुख्य सचिव पद तक पहुंचे तो वहीं संजीव कौशल हरियाणा के मुख्य सचिव बने। संजीव कौशल से भी परिचय रहा और वे बहुत स़वेदनशील हैं ।
बात पितृ दिवस की हो रही है और ये पांच आईएएस पिता की प्रेरणा से ही अपनी मंजिल को पा सके। हिसार में सामाजिक कार्यकर्त्ता सुरेंद्र छिंदा का जिक्र इसलिए कि उन्होंने दो बेटियां होने के बावजूद बेटियों को बेटों से कम नहीं माना। अपनी पत्नी का अंतिम सस्कार बेटियों से ही करवाया और कीरतपुर साहब में फूल विसर्जन भी बेटियों के हाथों ही करवाया और बेटियों के लिए वे कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में प्रदर्शनियां भी लगाते आ रहे हैं। डाॅ शमीम शर्मा का जिक्र भी जरूरी है, जो दो बहनें ही हैं लेकिन पिता पूरण मुद्गल ने इन्हे बेटों से कम नही माना। डाॅ शमीम शर्मा न केवल साहित्य में बल्कि रक्तदान में भी पीछे नहीं हैं। दो दिन पूर्व ही इन्हे़ं रक्तदान के लिए राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया है। आदर्श कुमार भी एक आदर्श पिता हैं, जिन्होंने अपनी दोनों बेटियों विभा व रश्मिता को उच्च शिक्षा के साथ सगीत की शिक्षा भी दिलाई और ये बेटियां इतने पुरस्कार जीत चुकी हैं कि रखने के लिए अलग शोकेस बनवाना पड़ा। संयोगवश मेरी भी दो बेटियां हैं रश्मि और प्राची, जो हर सुख दुख में बेटों से बढ़कर मेरे साथ खड़ी होती हैं। अपनी कविता का अंश देकर बात समाप्त करता हूँ:
जादूगर नहीं थे पिता
पर किसी बड़े जादूगर से कम नहीं थे !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।