आया सावन, कितने पड़े झूले? 

तीज का बेसिक भूले, तीज क्वीन रह गयीं 

आया सावन, कितने पड़े झूले? 

-कमलेश भारतीय
सावन आ गया। ‌सावन के कितने ही गीत हैं और तीज की पुरानी परंपरा। मिठाइयो़ं की याद भी आती होगी! सुहानी, गुलगुले और झेवर‌ ! मुंह में पानी आ गया होगा? सोचा, क्यों न पूछा जाये कि आजकल तीज मनाते हो? 
**डाॅ पूनम परिणीता : आबकारी व कराधान अधिकारी, कवयित्री व पेंटर आर्टिस्ट डाॅ पूनम परिणीता का कहना है कि तीज का बेसिक भूला, तीज क्वीन रह गयीं । बचपन में खूब तीज पर झूला झूला है। अब तो पुरानी बातें हो गयीं जैसे ! अब तीज एक फैशन की तरह मनाई जा रही है और तीज क्वीन ही दिखाई देती हैं। 
*दीपिका जाट्टान : गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय के प्रो दलबीर सिंह की धर्मपत्नी दीपिका जाट्टान ने बतया कि बचपन में मां के साथ गांव में तीज मेला मनाने जाती थी और खूब झूला झूली हूँ । गुजवि कैम्पस में तो कम ही तीज उत्सव देखा लेकिन शहर में कुछ महिलायें ग्रुप्स में मनाती हैं तो वहां जाती हूँ और इ़जाॅय करती हूँ, खूब तीज को! 
**डाॅ अनीता सहरावत : एफसी गर्ल्ज काॅलेज की प्रिंसिपल डाॅ अनीता सहरावत ने कहा कि बचपन से तीज में झूला बहुत पसंद रहा। यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है और तीज को जोश से मनाया ही जाना चाहिए। 
**बबली चाहर : खुशी नाम से समाजसेवी संस्था चला रही बबली चाहर पिछले दस साल से तीज उत्सव मना रही हैं। बस, परिवार रहे नहीं, छोटी इकाइयां रह गयीं तो कौन मनाये तीज! इसलिए अपनी कुछ सखी सहेलियों को इकट्ठा कर तीज उत्सव मना लेती हूँ। हरियाणवी संस्कृति का बहुत प्यारा त्योहार है महिलाओं का ! हमारा कल्चर लुप्त होता जा रहा है, जितना बचा सकें, उतनी कोशिश तो कर लेनी चाहिए। 
**नीलम पिलानिया : विज़्डन स्कूल की संचालिका नीलम पिलानिया ने कहा कि तीज हरियाणा, राजस्थान व उत्तर प्रदेश का बड़ा त्योहार है। पुराने जमाने में आने जाने के साधन नहीं थे, सावन में भाई कोथली लेकर जाते थे और बहनें भी इंतज़ार करती थीं और खुशी में झुला झूलती थीं सहेलियों के साथ। अब तीज को बचाने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियों को इसका महत्त्व पता रहे। आने वाली पीढ़ी को हम विरासत सौंप कर जायें । 
**रेखा ऐरन : राजनीति में रमी रहने वाली रेखा ऐरन बचपन से तीज को बहुत पसंद करती हैं और इसका इंतज़ार करती हैं। बहुत अच्छा लगता है, तह त्योहार और झूला झूलना! बचपन में बहुत झूले के मज़े लिए। कभी गिरी नहीं, चोट नहीं लगी। पिछले दस पंद्रह साल से तीज की सेलिब्रेशन कम हो रही है। यह हमारी संस्कृति है, इसे मनाना और बचाना चाहिए। 
**डाॅ पूजा आहलान : आदमपुर के गवर्नमेंट काॅलेज में हिंदी प्राध्यापिका डाॅ पूजा आहलान ने कहा कि तीज हमारी हरियाणवी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग है, खासकर महिलाओं का मनभावन त्योहार। इसका जितना प्रचार प्रसार हो, उतना अच्छा है । यह विलुप्त होता जा रहा है। इसे बचाने की कोशिश होनी चाहिए। मैं तीन बार तीज क्वीन बन चुकी हूँ।