अश्विनी जेतली की एक नई `ग़ज़ल'
पेशे से अश्विनी जेतली एक पत्रकार हैं मगर उनके दिल में एक शायर की रूह है
ये किस मिजाज़ की यारो मेरी सरकार हो गयी
जन जन की नहीं धन धन की जै जै कार हो गयी
हमारा डूबना तो तय उसी दिन हो गया था, जब
महल का नाख़ुदा, धनवान की पतवार हो गयी
छेड़ के दिल के तारों को उसने जब से बदली राह
कि तब से ज़िंदगी की राह ही दुश्वार हो गयी
तेरे दीदार के थे ये नयन प्यासे मिरे साजन
तुम्हारी इक झलक से ज़िंदगी गुलज़ार हो गयी
इसी में रह के दिल को अब सकूँ मिलने लगा है
तुम्हारी याद की नगरी, मेरा घर-बार हो गयी
हमारे हौसले की अब ज़माना दाद देता है
कहा करता है तिरी शायरी तलवार हो गयी