साक्षात्कार/अश्विनी जेतली
बहुत मासूमियत लाए थे
अपने चेहरे पर सजा कर
तुम उस दिन
भोलापन था तुम्हारे शब्दों में
आज तुम्हारा साक्षात्कार देखा
तुम्हारे शब्दों में मासूमियत थी
मसनवी
एक और चेहरा ओढ़े हुए थे तुम
वास्तव में यही था सत्य
जिसे पहचान नहीं पाया था तब मैं
ख़ैर
शब्दों में अपने ही शब्दकोश
का साक्षात पा कर आँखें
खुल गईं हैं अब
और धराशाई हो गया है
तुम्हारी मासूमियत का तिलिस्म
साक्षात्कार हो रहा है स्वयं से
कि कितना मंदबुद्धि था मैं
जो जान नहीं पाया था तुम्हारी मसनवी मासूमियत का
काला सत्य
जो आज बेपर्दा हो गया है तुम्हारे साक्षात्कार से