साइकिल से लेकर आम तक सब कुछ हिला डाला
पहले कोरोना, फिर यूक्रेन पर रूस का हमला, और उसके बाद मौसम की मार, तीनों चीजों ने भारत और दुनिया के तमाम देशों को हिला कर रख दिया। कोरोना तो काफी हद तक काबू में है, रही बात रूसी युद्ध की तो वो भी एक दिन समाप्त हो जाएगा। लेकिन मानवता के समक्ष मुसीबत फिर भी बनी रहेगी, क्योंकि जलवायु परिवर्तन का खतरा पंजे फैलाए खड़ा है। सैन्य कार्रवाई से आवोहवा बिगड़ती है। मसलन, पाकिस्तान सीमा से सटे शियाचिन ग्लेशियर पर फौज की मौजूदगी से बर्फ पिघलती रहती है, जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ता है। हाल की मुसीबतों से व्यक्ति, बाजार और सेहत सब पर असर पड़ा है। महामारी के वक्त इम्युनिटी दुरुस्त रखना सबकी पहली जरूरत थी। शरीर को फिट रखने के लिए साइकिल चलाने की सलाह शुरू से ही दी जाती रही है। पिछले दो सालों में लोगों ने जम कर साइकिलें खरीदीं और चलाने का शौक भी पूरा किया। इस दौरान इतनी साइकिलें बिकीं कि साइकिल इंडस्ट्री ने चीन को टक्कर देने का मन बना लिया था। फिर शुरू हुआ रूस-यूक्रेन युद्ध और सारा खेल ही पलट गया।
अभी हालत यह है कि साइकिल कंपनियों को अपना उत्पादन 50 प्रतिशत तक घटाना पड़ गया है। एक साइकिल बनाने में स्टील, निकल, क्रोम साल्ट, रबड़ और कार्बन ब्लैक आदि कच्चे माल की जरूरत होती है। यू्क्रेन युद्ध के चलते सप्लाइन लाइन बाधित हो गईं और स्टील के दाम दोगुने हो गए। बाकी कच्चे माल की लागत भी 30 प्रतिशत बढ़ गई। इसकी वजह से साइकिल उद्योग को हर महीने 300 करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है। दुनिया में सबसे ज्यादा साइकिलें चीन में बनती हैं, दूसरे नंबर पर भारत है। भारत में साइकिल निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र पंजाब का लुधियाना शहर है। हीरो, एवन और यूनाइटेड जैसी साइकिल कंपनियां लुधियाना में ही मौजूद हैं। इसी तरह से, अखबारों को पहले कोरोना ने मारा और अब यूक्रेन युद्ध के बादल इस इंडस्ट्री पर छा रहे हैं। दरअसल आपूर्ति लाइन बाधित होने से अखबारी कागज समय पर नहीं आ पा रहा है, जिससे कागज की कीमत बढ़ गई है। अखबार छापने में कागज के अलावा इंक और एल्युमिनियम प्लेट का भी इस्तेमाल होता है। ये सभी कच्चा माल 15 से 22 प्रतिशत तक महंगा हुआ है, जिससे अखबार प्रकाशकों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसके बावजूद भारत में अखबारों के दाम अन्य देशों की तुलना में काफी कम हैं।
रूस यूक्रेन युद्ध के कारण वैसे तो पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ी है, लेकिन इसका ज्यादा असर यूरोपीय देशों पर पड़ा है। जर्मनी, स्पेन, इटली जैसे देशों में तो डिपार्टमेंटल स्टोर से सामान खरीदने पर राशनिंग की जा रही है, यानी लोग मनचाही मात्रा में चीजें नहीं खरीद सकते। खाद्य तेलों के रैक खाली दिखाई पड़ते हैं और गेहूं के आटे की भी किल्लत हो रही है। मौसम की मार से नीबू ही नहीं, आम भी प्रभावित हुआ है। महाराष्ट्र और गुजरात में पिछले साल तूफान आने से नीबू की फसल नष्ट हो गई थी। इसी तरह, इस बार समय से पहले बढ़ी गर्मी और कुछ राज्यों में हुई बेमौसम बारिश के चलते आम का बौर मुरझा गया, इस कारण से आम की पैदावार पर असर पड़ा है। तभी तो इस बार आम दोगुने दाम पर बिक रहा है और सप्लाई भी कम है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं)