मोक्षाश्रम से स्टार वृद्धाश्रम तक 

मोक्षाश्रम से स्टार वृद्धाश्रम तक 

-*कमलेश भारतीय
हिसार में समाजसेविका पंकज संधीर वर्षों से मोक्षाश्रम बिना किसी स्वार्थ, पद या किसी भी गोपनीय इच्छा या लालसा के बिना ही  चला रही हैं । आश्रम में और अब तो आश्रम से बाहर भी उन्हें सब 'मां' कहकर संबोधित करते हैं और उनकी मुस्कान आश्रम में रह रहे आश्रितों की हर इच्छा पूरी कर खिलती है । यह मुस्कान बहुत निश्छल मुस्कान है, जैसे कोई देवी मुस्कुरा रही हो । अनेक बार संधीर के साथ मोक्षाश्रम जाने का अवसर बना और वहां जाकर वे कैसे एक एक, कमरे में जाकर सबका हालचाल जानती हैं और उनकी कोई मांग तो नहीं, यह जानती हैं और पिछली मांग के बारे में जानती हैं कि पूरी हो गयी या नहीं ? इस तरह वे वृद्धों के चेहरे पर खुशी खिलाने के लिए कभी कोई तो कभी कोई आयोजन रखती ही रहती हैं, जिससे आश्रमवासियों को अकेलापन महसूस न हो  ! किसी न किसी धार्मिक संस्था की ओर से भजन संध्या का आयोजन करवाती हैं और हर दिन, त्योहार भी इनके साथ मनाती हैं, जिससे इनको अपने परिवारजनों से बिछुड़ने का कोई अफसोस न हो, कोई मलाल न रहे !
अब आज अखबार में जानकारी मिल‌ रही है कि राजकोट(गुजरात) में एक उद्योगपति विजय भाई डोबरिया फाइव स्टार सुविधाओं से लैस एक वृद्धाश्रम बनवा रहे हैं, जो तीस एकड़ में बन रहा है और इसके सात टावरों में बन रहे 1400 कमरों में पांच हज़ार बुजुर्ग रह पायेंगे ! यही है हिसार के मोक्षाश्रम से राजकोट के वृद्धाश्रम का सफर ! वैसे तो हमारी भारतीय संस्कृति में इन आश्रमों को कोई बहुत खुशी की बात नहीं मानी जानी चाहिए लेकिन जैसा हमारा नया समाज बना है, उसमे ऐसे आश्रमों की बहुत जरूरत महसूस हो रही है। जिनके लिए सारा जीवन, अपनी सारी खुशिया, अपने सपने न्योछावर कर दिये, वही बच्चे वृद्धाश्रम में अकेलेपन में छोड़ आने में संकोच नहीं करते ।  यह कितना बड़ा दुखांत है हमारे नये समाज का ।  पंकज संधीर को विजय भृगु का साथ मिल रहा है और इनके निष्फल काम को देखते हुए प्रशासन व हरियाणा सरकार को किसी मंच पर इनको सम्मानित किया जाना चाहिए ।  यह और लोगों को समाजसेवा करने के लिए प्रेरित करेगा ।  
अभी दीपावली के अवसर पर सेक्टर सोलह सत्रह की पैंसठ झुग्गी झोंपड़ियाँ जलकर राख हो गयी थीं और साथ ही जलकर राख हो गये थे इनमें रहने वाले लोगों के सपने लेकिन धन्य हैं हिसार की समाजसेवी संस्थायें और विधायक श्रीमती सावित्री जिंदल जिन्होंने सिर्फ पांच दिनों में इनके जीवन में फिर से खुशियों के रंग भर दिये ।  ऐसी समाजसेवी संस्थायें अन्य शहरों में भी होंगीं अवश्य ही । सच कहूं, इनके ही दम पर मानवता ज़िंदा लगती है दिखती है । युवा लेखिका रत्ना भदौरिया ने इन्हीं स्थितियों में जी रहे वृद्धजनों पर एक कथा संकलन संपादित किया है जिसमें अनेक कहानियों में एक मेरी कहानी भी शामिल है। यह संकलन पठनीय है और मैंने इसे मोक्षाश्रम को श्रीमती संधीर के माध्यम से अर्पित कर दिया है । 
सभी समाजसेवी संस्थाओं को नमन् करता हूं और प्रशासन को भी चाहिए कि इनकी पहचान कर गणतंत्र दिवस पर इनको बिना किसी एप्लीकेशन से सम्मानित कर उत्साह बढ़ाये  उदयभानु हंस की पंक्तियों के साथ अपनी बात कह रहा हूं :
मत जिओ सिर्फ अपनी खुशी के लिए
कोई सपना बुनो ज़िंदगी के लिए 
कोई मकसद चुनो ज़िंदगी के लिए
मत जिओ सिर्फ अपनी खुशी के लिए!! 

-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।