समाचार विश्लेषण/कहां से दोगे मुफ्त रेवड़ियां?
-*कमलेश भारतीय
फिर उठा है यह सवाल कि कहां से दोगे मुफ्त रेवड़ियां ? यह सवाल उठाया है मौद्रिक नीति समिति की सदस्या आशिमा गोयल ने । उन्होंने कहा कि रेवड़ियां कभी मुफ्त नहीं होतीं । अगर राजनीतिक दल ऐसी पेशकश करते हैं तो उन्हें मतदाताओं को इनके वित्त पोषण और अन्य पहलुओं के बारे में भी बताना चाहिए । राजनीतिक दलों को बताना चाहिए कि मुफ्त सुविधाओं के लिए पैसा कहां से आ रहा है या आयेगा ? अर्थव्यवस्था पर इसका कितना और कैसा असर पड़ेगा । राजनीतिक दलों को ऐसी लोकलुभावन सुविधाओं की जानकारी देने पर इनका प्रलोभन कम हो जायेगा । सरकार जब मुफ्त सुविधायें देती है तो कहीं न कहीं से इसकी भरपाई करती है । इन मुफ्त सुविधाओं की घोषणा से कीमतों पर भी असर पड़ता है ।
याद रहे कि इस बहस की शुरूआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी और कहा था कि मुफ्त सुविधायें देना करदाताओं के पैसे की बर्बादी है । इससे न सिर्फ आर्थिक नुकसान होता है बल्कि भारत के आत्मनिर्भर बनने के अभियान को भी प्रभावित कर सकता है ।
इससे पहले हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस व अपने पचपन तबादलों से खूब चर्चित अशोक खेमका ने भी दो टूक शब्दों में यही कहा था कि मुफ्त रेवड़ियों की कीमत गरीब जनता को चुकानी पड़ती है । इसलिए जो नेता इनकी घोषणाएं करते हैं कुछ जिम्मेवारी उनकी भी होनी चाहिए ।
सारा देश जानता है कि मुफ्त मुफ्त का सबसे ज्यादा नारा और वादा आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल करते आ रहे हैं । इनके वादों का असर देखकर दूसरे दलों ने भी मुफ्त की घोषणाएं करनी शुरू कर दीं । पंजाब में आप पार्टी द्वारा चुनाव के दौरान तीन सौ यूनिट बिजली फ्री देने के मुकाबले काग्रेस ने छह।सौ यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा किया था । यदि कांग्रेस जीत जाती तो छह सौ यूनिट बिजली फ्री होती जबकि आप के जीतने पर तीन सौ यूनिट फ्री बिजली देने का श्रेय लेने के लिए बड़े बड़े विज्ञापन दिये गये । मुफ्त के प्रचार पर भी करोड़ों रुपये के विज्ञापन ? ये कहां से आते हैं ? एक करेला दूजे नीम चढ़ा जैसी बात हो गयी । ज़िंदगी में मेहनत का कोई शाॅर्टकट नहीं है । यह बात समझाने और समझने की है । चुनाव तो जीत जाओगे लेकिन वादे कहां से पूरे करोगे ? कभी यह सोचा ? एक से बढ़कर एक वादे और फिर निराशा । इसीलिए तो क॔डेला आंदोलन हुआ । वादे को पूरा नहीं किया और जनता ने सच मान लिया । साइकिल , लैपटॉप भी किसी काम न आये । यह सब मायाजाल क्यों ? इससे जनता को माफ कीजिए और सच्ची योजनाएं बनाइये ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।