गांधी: कौन जानता था, फिल्म से पहले
-*कमलेश भारतीय
प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइनस्टाइन ने कहा था कि आने वाले पीढ़ियां बहुत मुश्किल से यह यकीन कर पायेंगीं कि कभी मनुष्य के रूप में कोई महात्मा गांधी हुआ होगा लेकिन यह भेद अब जाकर खुला कि महात्मा गांधी पर जब फिल्म बनी, तब जाकर देश विदेश को जानकारी हुई कि कोई महात्मा गांधी नाम का महापुरुष भी हुआ था देश में। यह बात कोई और कहता तो इसे हंसी मज़ाक में उड़ा देते लेकिन यह बात कही है हमारे देश के सर्वोच्च पद पर बैठे महापुरुष ने। अब कितनी शर्म की बात है कि नहीं ? महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता और कहां नहीं जानता। दक्षिण अफ्रीका में एक केस लड़ने गये वकील मोहनदास कर्मचंद गांधी के साथ ट्रेन में जो घटना घटी उससे वकील कहीं पीछे छूट गया, एक संघर्ष करने वाले महात्मा ने जन्म ले लिया और फिर जो उस महात्मा ने किया, वह सारी दुनिया जानती है। फिल्म तो बहुत बाद की बात है महामना। देश के चप्पे चप्पे पर महात्मा गांधी का नाम है और स्वतंत्रता संग्राम में इनके योगदान से इतिहास भरा पड़ा है और आप कहते हैं कि एक फिल्म बनने से पता चला कि कोई महात्मा गांधी हैं। क्या गांधी के बारे में गुजरात में आप कभी कुछ नहीं सुन पाये? आपको सरदार बल्लभ भाई पटेल का पता है, महात्मा गांधी की कोई जानकारी नहीं ? फिर दो अक्तूबर को स्वच्छता अभियान कैसे चला और क्यों चलाया जाता ? यह कैसे हो सकता है ? फिर तो कंगना रानौत की बात भी माननी पड़ेगी कि देश को असली आज़ादी सन् 2014 के बाद मिली, सन् 1947 में तो अंग्रेज़ों ने जो आज़ादी दी थी वह तो महात्मा गांधी को भीख में दी थी। अरे ! सारा इतिहास उलट पुलट कर रख दिया इस हिमाचली छोरी ने तो।
महात्मा गांधी पर फिल्में बहुत बाद में बनीं, पहले तो उनकी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' ने धूम मचा दी। यह एक ऐसी आत्मकथा है, जिसमें अपनी भूलों को खुलकर बयान और स्वीकार किया है महात्मा गांधी ने। बचपन में नकल से लेकर, पिता की जेब से पैसे चुराने तक। पिता की जेब में चिट्ठी रखकर अपना अपराध कबूल करने तक। महात्मा बनना आसान नहीं था। आंदोलनकारी में हिंसा बढ़ने पर आंदोलन वापस लेने तक के फैसले तक।
क्या ऐसे महात्मा गांधी को जानने के लिए किसी फिल्म का योगदान है या कि ऐसे व्यक्ति पर फिल्म बना कर फिल्ममेकर ने जो कमाया, उसमें महात्मा गांधी के करिश्मे का रोल है ? दिन एटनबरो को कैसे और कहां से पता चला था, जो फिल्म बनाने आ गये? मुन्नाभाई जैसी दो फिल्मों ने नये सिरे से गांधीगिरी की ताकत का अहसास करवाया था। यह कहना कि फिल्म के बाद दुनिया को पता चला, यह बहुत बड़ी भूल है, अज्ञानता है, मासूमियत है और कृपया चुनाव में ऐसी बातों को मुद्दे न बनाइये, जिनसे स्थिति हास्यास्पद हो जाये। कभी मंगलसूत्र तो कभी भैस और कभी कुछ। आपकी यह गरिमा नहीं है महामना। आप इस देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान हैं और ऐसी बातें आपके मुख से शोभा नहीं देतीं। यह पद तो आयेगा, जायेगा लेकिन आपकी कही बातें दर्ज रह जायेंगीं। और आपसे पहले और बाद में इस पद पर महामना आयेंगे लेकिन अपनी छाप छोड़िये महामना।
हम न रहेंगे, तुम न रहोगे
फिर भी
रह जायेंगी कहानियां !
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी।