लघुकथा/घर की खीर
नीतीश का काम ही ऐसा था। सप्ताह में तीन चार दिन उसे घर से बाहर ही रहना पड़ता था। आज देर रात वह चार दिन बाद घर वापस लौटा था। नहा कर उसने खाना खाया और बेडरूम में आकर बैठ गया। उसने टीवी का रिमोट उठाया और बेड पर बैठे हुए न्यूज़ चैनल देखने लगा। इतने में उसकी पत्नी बैडरूम में आयी। उसके बाल खुले थे और गीले भी। शायद नहा कर आई थी। उसने नाईटी पहनी हुई थी। मेकअप भी किया हुआ था। परफ्यूम भी लगा रखा था। उसके बैडरूम में आते ही पूरा कमरा फ्रेग्रेन्स से महक उठा था। उसने एक हाथ में कटोरी पकड़ रखी थी। उसने आकर कटोरी नितीश के हाथ में थमा दी। नितीश ने देखा, खीर में अच्छे खासे मेवे डाले हुए थे। नितीश ने कटोरी बेड के साइड टेबल पर रख दी। किसी समय वह मांग कर खीर खाता था। उस समय उसकी पत्नी उसे अधिक मीठा खाने से टोका करती थी। कहती थी - अधिक मीठा खाना सेहत के लिए ठीक नहीं है। लेकिन, वह कहाँ मानता था। एक कटोरी खीर खाने के बाद दूसरी कटोरी की मांग करता था। कई बार इससे भी अधिक। समय के साथ वह खीर से ऊब गया। उसे खीर खाने में कोई स्वाद न आता। वह तो अब बाहर की रंग बिरंगी मिठाईयां खाने का शौकीन हो गया था। बाहर जा कर वह यहाँ वहां चांदी के वर्क वाली मिठाईओं की तलाश करता। बेड पर लेटकर उसकी पत्नी ने दो तीन बार उसके साथ बातचीत करने की कोशिश की। लेकिन उसने कोई उत्साह न दिखाया। वह बस टीवी पर न्यूज़ चैनल देखता रहा। कुछ देर बाद उसने खीर से भरी कटोरी को पास पड़ी एक प्लेट से ढक दिया। कमरे में एसी की काफी कूलिंग हो गयी थी। उसने देखा उसकी पत्नी बेडशीट लेकर सो चुकी थी। अब यह सिलसिला रूटीन बन चुका था। लेकिन उसकी पत्नी ने उसके घर लौटने पर खीर परोसना बंद ना किया था। यह बात अलग है कि नितीश अधिकतर खीर खाने का नाटक ही करता था। एक दिन अचानक नितीश की तबियत बिगड़ गयी। उसे डॉक्टर के पास लेजाया गया। उसके टेस्ट हुए। उसकी टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आयी थी। उसके बाद उसके घर में कभी खीर न बनी।
-मनोज धीमान