ग़ज़ल /अश्विनी जेतली
दिल लगाने का सिला तो रुस्वायीआं मिलेंगी
छलकेगा नीर नैनों से बस तनहाईआं मिलेंगी
ऊबे हो गर देख कर तुम, मसनवी से चेहरे
सच के शहर में आना कभी,रानाइयाँ मिलेंगी
वो झूठ के पुजारी अब सच से डरें हैं इतना
उडती हुई उनके चेहरों से, हवाइयीँ मिलेंगी
बचपन में शादियों में जाते थे इसलिए हम
कि इमरती, गुलाब जामुन, मिठाईयाँ मिलेंगी
शहर में तो गईं हैं छोड़ सब,अब गांव ही चलें
शायद वहां पर कुछ मेरी परछाईंयाँ मिलेंगी
कुदरत को देखना है तो कभी गांव मेरे आना
खेतों की सोंधी महक और पुरवाईयाँ मिलेंगी