ग़ज़ल /अश्विनी जेतली

ग़ज़ल /अश्विनी जेतली
अश्विनी जेतली।

तुम्हें मिलने की तलब और भी फिर बढ़ने लगती है
तुम्हारी याद मेरे सीने में जब मचलने लगती है

सुबह-ओ-शाम होठों पर जो इक नाम रहता है
रात तारीक में शमा उसी की जलने लगती है

तेरी याद, तेरा ख़ाब आने पर खुशी से झूम जाऊँ तो
मेरी इतनी खुशी भी इस जहां को खलने लगती है

सहारा ढूँढता हूँ मयकशी का ग़म भुलाने को
जाम का नाम आता है शाम जब ढलने लगती है

कभी ऐसा भी होता है कि जो मासूम दिखता है 
उसी छलिए की हमें मुस्कुराहट  छलने लगती है

किसे तूफानी लहरों से भला डर लगता होगा तब
मुहब्बत की कमबख्त कश्ती जब भी ठलने लगती है

कभी जब सोचता हूं छोड कर वो चल दिया क्यूँ कर
थाम कर हाथ मेरा याद उसकी चलने लगती है