ग़ज़ल /अश्विनी जेतली
दूर देस जो चला गया है, दिल से गया वो दूर नहीं
यादों से मनफ़ी होना भी, हुआ उसे मनज़ूर नहीं
हिज्र की बन कर नज़्म वो अक्सर, ख़्वाबों में तो आते हैं
मिलन गीत बन जाना शायद, था उनको मनज़ूर नहीं
बिन बाती बिन तेल जले जो हर पल दिल में यारो
याद का जगमग जलता दीपक, हुआ कभी बे-नूर नहीं
जन जन के जीवन में खुशियाँ लाना जिसका मक़सद हो
मक़सद को वो पा ही लेगा, मंज़िल भी रहेगी दूर नहीं
झुकना उसकी फ़ितरत नहीं, शायर है वो जनाब
शऊर है उसकी हर अदा में, स्वैमानी है, मग़रूर नहीं