गुलजिंद्र गुल्लू : संगीतकार परिवार से थियेटर तक
-कमलेश भारतीय
रंग आंगन नाट्योत्सव में पंजाब के अबोहर से आई नटरंग रंगटोली के नाटक 'जी आइयां नूं' की हीरोइन गुलजिंद्र गुल्लू संगीतकार परिवार से आने के बावजूद थियेटर की ओर भी खिंची चली आई । नौवीं कक्षा में थी जब समर कैंप लगाया और नटरंग टोली ने इसकी प्रतिभा को देखते अपने साथ जोड़ लिया । वैसे गुलजिंद्र एम संगीत तक शिक्षित है और सुगम संगीत के कार्यक्रम भी प्रस्तुत करती है । मूल रूप से अबोहर पंजाब की निवासी गुलजिंद्र की ग्रेजुएशन अबोहर के गोपीचंद काॅलेज से हुई और एम ए संगीत ( गायन) श्रीगंगानगर से ।
-कोई जाॅब की ?
-जी । अबोहर और श्रीगंगानगर के स्कूलों में संगीत प्राध्यापिका रही । आजकल फ्रीलांसर आर्टिस्ट ।
-संगीत में कैसे आई ?
-बचपन से ही । मेरे पापा गुरतेज सिंह कीर्तन करते और हार्मोनियम घर पर रहता पर हाथ न लगाने देते । फिर प्यार से एक सबद सिखाना शुरू किया । मेरी बड़ी बहन , भाई और मैं सभी संगीत से जुड़े हुए हैं मेरे जीजा जी भी । मां परमजीत गृहिणी हैं । मेरे संगीत गुरु मेरे पापा ही हैं ।
-फिर थियेटर में कैसे ?
-नौवीं क्लास में थी जब समर कैंप लगा और मैंने थियेटर ले लिया । वैसे बचपन से यह भी शौक था कि नाटक करूं ! बस । नटरंग ने मुझे जोड़ लिया । इस तरह थियेटर से भी जुड़ गयी ।
-अब तक कितने नाटक ?
-चार । जी आइयां नूं, इंतजार , अन्नी माई दा सुपना और हास्य नाटक मक्खियां !
-संगीत में कौन पसंद ?
-श्रेया घोषाल और लता मंगेशकर ।
-कोई पुरस्कार ?
-गायन में काॅलेज में अनेक पुरस्कार ।
-क्या लक्ष्य ?
-पहले संगीत की दुनिया में नाम बनाना चाहती हूं वैसे अच्छा थियेटर करती रहूंगी । मैं संगीत कार्यक्रम भी देती हूं ।