समाचार विश्लेषण /बंदूक, शिक्षा और हमारी सोच
-*कमलेश भारतीय
जम्मू कश्मीर के ताज़ा घटनाक्रम में कश्मीरी पंडित माखन लाल बिंद्रू को आतंकवादियों ने मार गिराया । वे माखन लाल जो सन् 1990 में भी कश्मीर से पलायन कर कहीं नहीं गये और अपनी केमिस्ट शाॅप चला कर अपनी सेवायें हर वर्ग को देते रहे । लगभग तीस साल आतंक के साये में इतनी निडरता से जिये कि अपनी संतान को भी वही निडरता का पाठ पढ़ा गये तभी तो उनकी बेटी श्रद्धा बिंद्रू ने जो कहा वह बहुत सोचनीय है, विचारणीय है और महत्त्वपूर्ण है । क्या बंदूक बड़ी है या शिक्षा ? शिक्षा बड़ी है । बंदूक किसी काम नहीं आती मुसीबत में । यही बात श्रद्धा बिंद्रू ने कही कि आपको नेताओं ने हाथों में बंदूक थभाई तो मेरे पिता ने दी शिक्षा । आज मैं एसिस्टेंट प्रोफेसर हूं । आओ मेरे साथ बहस करो । इन नेताओं के हाथों में न खेलो । शिक्षा आपको सब कुछ देती है और बंदूक आपसे सुख चैन छीन लेती है । मेरे पिता ने मुझे कुरान भी पढ़ाया और कुरान में कहीं हिंसा करने की बात नहीं । मेरे पिता को आपने मारा जरूर लेकिन वे जिंदा रहेंगे और उनकी सोच भी । आखिर कुरान इसकी इजाजत नहीं देता । कुरान किसी के हाथ में बंदूक नहीं थमाता । कुरान हो या कोई भी धार्मिक ग्रंथ वह हिंसा नहीं पढ़ाता । दुनिया का हर धार्मिक ग्रंथ प्रेम ही पढ़ाता हे और प्रेम ही बांटने की शिक्षा देता है तो श्रद्धा ने ललकारा कि आओ मेरे हाथ बहस करो ।
सवाल उठता है कि यदि इतना साहस हर नागरिक में आ जाये तो आतंकवाद की जड़ें हिल जायें । जब आतंकवादी भाग निकलने की सोचें तब इन्हें सब लोग घेर लें तो ये क्या कर पायेंगे और कितने लोगों को मार सकेंगे ? ये तो बंदूकधारी हैं और यही इनकी ढाल है लेकिन इतना हौसला नहीं कि भीड़ के आगे टिक सकें ।
एक बेटी की ललकार को सुनने ही नहीं बल्कि समझने की जरूरत है। ये वही लोग हैं जिन्हों ने दंगल की प्रतिभाशाली अभिनेत्री को भी घर बंद रहने पर मजबूर कर दिया । क्या वह अपनी कला को मार दे ? क्या आतंकवाद का यह तालिबानी चेहरा नहीं ? बताया जा रहा है कि चार हजार कश्मीरी पंडित कश्मीर लौट चुके थे और उनके हौंसला पस्त करने के लिए माखन लाल को चुना गया यानी टार्गेट बनाया गया । वे नहीं चाहते कि कश्मीरी पंडित अपने घरों में लौटें । श्रद्धा जैसी बेटी ने जैसे ललकारा है , ऐसे ही सबको ललकारना होगा तब कोई राह निकल सकेगी ,,,
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी का ।