गुरु का शिष्य को संदेश
अपने जीवन में लचीले बने रहिये
एक संत अपने शिष्य के साथ जंगल में जा रहे थे। ढलान पर से गुजरते वक्त अचानक शिष्य का पैर फिसला और वह तेजी से नीचे की ओर लुढ़कने लगा। वह खाई में गिरने ही वाला था कि तभी उसके हाथ में एक बांस आ गया। उसने बांस को मजबूती से पकड़ लिया और खाई में गिरने से बच गया। बांस धनुष की तरह मुड़ गया लेकिन न तो वह जमीन से उखड़ा ही और न ही टूटा। वह बांस को मजबूती से पकड़कर लटका रहा। थोड़ी ही देर बाद उसके गुरू वहाँ पहुंचे और उन्होंने हाथ का सहारा देकर शिष्य को ऊपर खींच लिया। दोनों अपने रास्ते पर आगे की ओर बढ़ चले। चलते-चलते रास्ते में गुरु ने शिष्य से कहा- जान बचाने वाले बांस ने तुमसे कुछ कहा क्या, तुमने कुछ सुना क्या?
शिष्य ने कहा- नहीं गुरुजी! शायद मेरे प्राण संकट में थे, इसलिए मैंने ध्यान नहीं दिया और मुझे तो पेड-पौधों की भाषा भी नहीं आती। कृपया आप ही बताने की कृपा करें कि बांस ने क्या कहा?
गुरु मुस्कुराते हुए बोले- खाई में गिरते समय तुमने जिस बांस को पकड़ लिया था, वह पूरी तरह से मुड़ गया था, फिर भी उसने तुम्हें सहारा दिया और तुम्हारी जान बची ली।
गुरु ने फिर आगे कहा- बांस ने तुम्हारे लिए जो संदेश दिया वह मैं तुम्हें दिखाता हूं।
गुरू ने रास्ते में खड़े एक बांस को खींचा औऱ फिर छोड़ दिया। बांस लचककर अपनी जगह फिर वापस लौट गया। हमें बांस के इसी लचीलेपन की खूबी को अपनाना चाहिए। तेज हवाएं, बांसों के झुरमुट को झकझोर कर उखाड़ने की कोशिश करती हैं लेकिन वह आगे-पीछे डोलता हुआ मजबूती से धरती में जमा रहता है।
बांस ने हमारे लिए यही संदेश भेजा है कि जीवन में जब भी मुश्किल दौर आए तो थोड़ा झुककर विनम्र बन जाना चाहिए, लेकिन टूटना नहीं चाहिए! क्योंकि बुरा दौर निकलते ही हम पुन: अपनी स्थिति में दोबारा पहुंच सकते हैं या हो सकता है कि पहले से भी बेहतर स्थिति में पहुँच जाएँ।
शिष्य बड़े गौर से गुरु की बात सुनता रहा। फिर गुरु ने आगे कहा-
बांस न केवल हर तनाव को झेल जाता है बल्कि वह इस तनाव को अपनी शक्ति बना लेता है और दुगनी गति से ऊपर उठता है।
इसके बाद गुरु ने बांस के संदेश को बताते हुए कहा कि अपने जीवन में इसी तरह लचीले बने रहना।
-प्रस्तुति : कमलेश भारतीय