नववर्ष की शुभकामनाएं किसे और कैसी ?
-कमलेश भारतीय
आ गया नववर्ष । कल रात भर खूब मचाया धमाल । घर , होटल , गांव गांव , शहर शहर सब जगह नववर्ष का धमाल मचा रहा । ये भी भूल गये कि ओमीक्रोन पैर पसार रहा है । विधायक महोदय ही भीड़ जुटाये रहे और पुलिस दर्शक बनी रही । लाखों करोड़ों रुपये खर्च कर डाले । दीपावली की तरह । क्या मिला ? ओशो कहते हैं कि नया वर्ष आया ही नहीं । कितने कितने वर्ष आपने पुराने कर दिए । कितने वर्ष वैसे ही निकाल दिए । क्या फर्क आया ? व्यक्तित्व में कोई बदलाव आया ?
नया नया दैनिक ट्रिब्यून ज्वाइन किया था । मुझे एम सी एम डीएवी गर्ल्ज काॅलेज में एक संत के प्रवचनों की कवरेज के लिए भेजा गया । पूरे पांच दिन । सुबह सवेरे जाना होता था । पर मैंने जो पाया वह अनमोल था । संत ने कहा कि आप चंडीगढ़ में हो । जहां चौराहे ही चौराहे हैं । आप 'यात्रा' न कर 'भटकते' मात्र हैं । 'यात्रा' और 'भटकन' में बहुत अंतर है । चलते दोनों में हैं । 'यात्रा' में मंज़िल मिलती है । 'भटकन' में थकान । 'यात्रा' में सफलता मिलती है । 'भटकन' में थकान और असफलता । 'यात्रा' में खुशी जबकि 'भटकन' में निराशा और थकान । ऐसे ही आप भटकते हैं चौराहा दर चौराहा । आप भी लोभ , मोह , ईर्ष्या , क्रोध और अहंकार में फंसे हो । क्या एक भी छोड़ा? फिर काहे की पूजा? काहे का मंदिर ? कोई एक तो छोड़ो । कुछ तो बदलाव लाओ । नहीं न । बदलते आप । फिर काहे की पूजा ? तभी सोशल मीडिया में भी आता रहता है कि यदि मंदिर , गुरुद्वारे , मस्जिद , चर्च कहीं भी जाकर बदलते नहीं फिर तो यह सैर के सिवाय कुछ नहीं है ।
रोज़ जाते हो भगवान् के द्वार । अपनी मांगें लेकर । वह भगवान् है या आपका नौकर ? जिसे सुबह सवेरे अपने कामों की लिस्ट सौंपने जाते हो कि शाम तक ये काम कर देना । भगवान् को नौकर न समझो । भगवान् से कुछ न मांगो । मन की शांति इसी में है । मांगना नहीं । देना है । लेना नहीं । देना ही देना है । समाज को खुली मुट्ठी कर देना है । सर्दियों में गरीबों को वस्त्र तो गर्मियों में शीतल पेयजल उपलब्ध करवायें । समाज को अर्पित करना है । पाने का कोई सुख नहीं । पाने की कोई सीमा नहीं । देने से बड़ी कोई खुशी नहीं । मेरी दादी कहती थी कि देने से खुशी मिलती है और पाने या मांगने पर कभी निराशा भी मिल सकती है । क्या पता सामने वाला आपको न कह दे । जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कृति 'कामायनी' यही संदेश तो देती है कि अधिक सुख की तलाश में दुख मिलना स्वाभाविक है । पाने की सीमा कहीं तो होगी और जहां खत्म होगी वहीं आपका दुख शुरू होगा । मैंने हिंदी एम ए में जयशंकर प्रसाद का एक पूरा पेपर पढ़ा और दिया । वे इतने बड़े कवि होकर भी अपने घर से दशाश्वमेध घाट तक जाते थे । बस । किसी समारोह , किसी सम्मान को लेने नहीं गये । वैसा नहीं कर पाया । प्रभाव बहुत है । कोशिश करता हूं कि जो है , जितना हो , उसी में खुश रहूं । फिर मेरा क्या नया , क्या पुराना साल ? हर दिन नया ,,,
हर चीज़ का एक ठिकाना हो
जीने का कोई बहाना हो
हर सुबह सुहानी हो
हर रात चांदनी हो ।
हर मित्र के घर उजाला हो
हर जगह खुशी बिखरी हो ,,,,
आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।