हर शख़्स अब आज़ाद हो
तितलियों भंवरों की मानिंद
इंसां भी आज़ाद हो
आज़ाद हो वोह इस गुमां से
इक वही है हुक्मरान
खादिम-ए-कुदरत है वोह
यह फिर से उसको याद हो
याद उसको फिर से आएं
उसकी जिम्मेवारियां
ठान ले अब कि
न फिर से गुलिस्तान बर्बाद हो
आबाद कुदरत के ख़जाने
शख़्स हर आबाद हो
न मुफ़लिसी न कमदिली
हर शख़्स ऐसे अब जिए
है ज़रूरत जिसकी जो भी
उस की हर इमदाद हो
क्या इस तरफ, क्या उस तरफ
हर शख़्स अब नौशाद हो
तितलियों भंवरों की मानिंद
इंसां भी आज़ाद हो।
-सी ए राजीव के शर्मा,
लुधियाना। पंजाब।