हरियाणा लेखक मंच 

हरियाणा की कथा व कविता पर विचार-मंथन 

हरियाणा लेखक मंच 

-कमलेश भारतीय 
करनाल में हरियाणा लेखक मंच के प्रथम सम्मेलन में हरियाणा की कथा व कविता परिदृश्य पर बहुत गंभीर और सारगर्भित विचार मंथन हुआ , जिसमें 
न केवल हरियाणा बल्कि दिल्ली से भी रचनाकारों ने भागीदारी कर इसकी गरिमा और महत्त्व को बढ़ाने में सहयोग दिया । 
प्रथम सत्र कथा परिदृश्य पर केंद्रित रहा जिसमें चर्चित कथाकार ज्ञानप्रकाश विवेक ने मुख्य वक्ता के तौर कहा कि निरंतर मांजते रहिए अपनी कहानी को । पूरी तड़प, बेचैनी जब महसूस हो तब एकाग्रता और पूरी ईमानदारी से लिखिए । किसी भी पत्रिका से कथा की वापसी के बाबजूद उत्साह बनाये रखिये । यह बहुत ही प्रतिकूल समय है और हमें इस संवादहीनता के दौर में कहानी के माध्यम से समाज से संवाद करना है ।  बस अव्यक्त को कितना व्यक्त करें , इस कला को पाना है । संवेदना और भावुकता के बीच के अंतर को समझना है । हमें कथा की पठनीयता बनाये रखनी है ।
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष व हिंदी कथा के आलोचक डाॅ लालचंद मंगल गुप्त ने जहां हरियाणा लेखक मंच के गठन की भूरि भूरि सराहना की , वहीं नये रचनाकारों से अधिक पढ़ने और कम लिखने की सलाह दी । यमुनानगर से आये डाॅ बी मदन मोहन ने कहा कि मंच की कोशिश होनी चाहिए कि राष्ट्रीय स्तर तक हरियाणा के कथाकारों की चर्चा हो । सोनीपत से पहुचीं डाॅ कमलेश मलिक ने कहा कि मंच का गठन नये रचनाकारों के लिए बहुत ही सही है और कहानी में पठनीयता , संवेदना और मानवीयता बनी रहनी चाहिए । खालसा काॅलेज के प्रिंसिपल गुरवीर सिंह ने कहा कि यदि अच्छा साहित्य नहीं लिखेंगे तो भाषा मर जायेगी । आज बहुत दुखद है कि हमारी तकनीक व व्यवहार की भाषा अंग्रेजी है । हमें साहित्य की पठनीयता के लिए संघर्ष और प्,यास करने होंगे ।
दूसरे सत्र में सिरसा से आये हरभगवान चावला ने कविता पर अपनी बात रखते कहा कि कविता सौंदर्यबोध से पैदा होती है और अभिव्यक्ति की बेचैनी ही इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है । आज समता और स्वतंत्रता पर संकट है और सत्ता की चापलूसी ही कविता नहीं होनी चाहिए । चावला ने पुरस्कारों की आपाधापी से हटकर लेखन कर्म करने का आह्वान किया । 
कुरूक्षेत्र से आये करूणेश ने कहा कि अभिव्यक्ति के खतरे हर दौर के लेखक को उठाने पड़ते हैं और उठाने होंगे ! 
दिल्ली से आईं और प्रसिद्ध रचनाकार डाॅ रामदरश मिश्र की बेटी डाॅ स्मिता मिश्र ने कहा कि सम्मान या पुरस्कारों से ऊपर है सार्थक लेखन और यदि सम्मान मिलता है तो यह रचनाकार का नहीं , संस्था का सम्मान और गौरव बढ़ाता है । लेखन में चुनौतियां हर दौर में रहीं । हमारा लक्ष्य , पाथेय और लेखन स्पष्ट होना चाहिए । आज मनुष्यता के प्रति आस्था ही संकट में है । फिर भी दुनिया में रहने और जिंदा रहने की वजहें बची हुई हैं । उन्होंने अपने पिता डाॅ रामदरश मिश्र की पंक्तियों के साथ बात समाप्त करते कहा :
घनी है रात बहुत 
खौफ का बसेरा है 
अंधेरा घना होता जायेगा 
कविता की जरूरत बढ़ती जायेगी ! 

यमुनानगर से आये डाॅ कंवल नयन कपूर ने कहा कि लेखकीय ईमानदारी की बहुत जरूरत है । ऐसे मंचों की भी सख्त जरूरत है । मंच को राजनीतिकवाद से हटकर मानवतावाद से जोड़े रखिये । समय के साथ साथ चुनौतियां बदली हैं और हमारे लेखन को भी बदलने की जरूरत है । संचलन ब्रह्म दत्त शर्मा और राधेश्याम भारती ने किया ।
प्रारम्भ में हरियाणा लेखक मंच के अध्यक्ष कमलेश भारतीय व उपाध्यक्ष अशोक भाटिया ने मंच के गठन के उद्देश्य से परिचित करवाने के साथ साथ सभी अतिथियों का स्वागत् किया । दोनों सत्रों के बीच लगातार प्रश्नोत्तर ने इसकी गंभीरता को और गहरा बनाया । लगभग एक दर्जन रचनाकारों की इस साल प्रकाशित कृतियों का विमोचन व संक्षिप्त जानकारी दी गयी । पुस्तक प्रदर्शनी ने भी इस सम्मेलन की सार्थकता सिद्ध कर दी । पूरे सम्मेलन का आर्थिक भार सभी लेखकों ने अपने ही कंधों पर उठाया -यह भी एक बहुत सराहनीय कदम कहा जा सकता है । सभी अतिथियों ने मुक्तकंठ से आयोजन को सराहा और इसकी गंभीरता व समय के पालन की सराहना की । युवा रचनाकारों अजय सिंह राणा , अरूण कहरबा , मदन लाल , अशोक बैरागी , पंकज शर्मा, राधेश्याम भारती, सतेंद्र राणा और ब्रह्म दत्त शर्मा के पृष्ठभूमि में रहकर किये अथक प्रयासों ने न केवल हरियाणा लेखक मंच के गठन व इस आयोजन की सफलता में भूमिका के लिए सराहा गया ।