हरियाणा: चुनौतियों की राजनीति
-*कमलेश भारतीय
मुझे हरियाणा में रहते रजत जयंती वर्ष बीत चुके हैं और यहां जो एक रिपोर्टर के रूप में महसूस किया वह यह कि यहां की राजनीति एक दूसरे को चुनौती देने की राजनीति है और जनता जनार्दन भी इसके पूरे मजे लेती है । चटखारे ले लेकर सुनती सुनाती है । चौपालों पर इनकी ही चुनौतियों पर बात होती है । इनके ही किस्से बयान होते हैं । हमारे एक पत्रकार मित्र ने तो इन नेताओं के किस्सों पर पूरी किताब ही लिख दी थी । शुरू शुरू में तो चंडीगढ़ में अपने अखबार के डेस्क पर था , तब चौ देवीलाल और चौ भजनलाल में चुनौती होती थी कि हम अपने नाक कटवा लेंगे यदि ऐसा न हुआ तो ,,,बताओ यह भी कोई चुनौती हुई ? लेकिन शुक्र है कि ऐसी नौबत कभी नहीं आई और सभी नेताओं के नाम कान सही सलामत रहे सदा ही । दूसरी जो आम चुनौती सुनने को मिलती है , वह यह कि यदि ऐसा न हुआ जैसा मैं कहता हूं तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा लेकिन मित्रो , चाहे कुछ भी हुआ यह नौबत भी कभी नहीं आई कि किसी हरियाणवी नेता ने भरी जवानी या बूढ़े होने तक कभी संन्यास लेने की घोषणा की हो । आपने सुनी कभी ऐसी घोषणा ? अरे आखिरी दम तक राजनीति करते हैं और जैसे एक समय फारूक इंजीनियर क्रिकेट टीम के विकेटकीपर थे तो किरमानी अपनी बारी की इंतजार करते गंजे ही हो गये थे । ऐसे ही एक एस धोनी ने भी पंत को खूब इंतजार करवाया । ऐसे ही हमारे हरियाणा के नेता नयी पीढ़ी के धैर्य की खूब परीक्षा लेते हैं । कांग्रेस में मुश्किल से चिरंजीव यादव व अमित सुहाग युवा विधायक बन पाये । इंद्रजीत की बेटी आरती आज तक टिकट की बाट देख रही है । न तो कांग्रेस और न ही भाजपा ने उसे टिकट दी । भव्य बिश्नोई को लोकसभा का टिकट तो मिला लेकिन जीत न मिली । हां , चौ बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी जरूर खुशकिस्मत रही । पहले सांसद बनी और अब प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष बनी लेकिन चिंतन शिविर में तो नहीं दिखीं । खैर ।
राजनीति में इन दिनों नयी चुनौती दी जा रही है । पहले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कहते रहे कि यदि विरोध ही करना है तो कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस के विधायक के तौर पर मंडी आदमपुर से इस्तीफा दें और फिर चुनाव लड़ें । यह बात एक माह से चल रही थी और कुलदीप बिश्नोई इस्तीफा दिये बिना ही बराबर क्राॅस वोटिंग कर रहे थे । वे चाहते थे कि कांग्रेस उन्हें निकाल कर शहीद बना दे लेकिन कांग्रेस शांति से सारा खेल देखती रही और श्री हुड्डा ने भी कहा कि हम कुलदीप बिश्नोई को निकालेंगे नहीं । आखिर इंतजार करते करते कुलदीप बिश्नोई ने कल विधानसभा से इस्तीफा दे ही दिया और इसके साथ ही एक चुनौती भी दी कि यदि अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा मंडी आदमपुर से चुनाव लड़ें और जीत कर दिखायें तो मानूं । यह भी हरियाणा के नेताओं की पुरानी चुनौती है । भला एक चुने हुए नेता को क्या पड़ी कि वे इस्तीफा देकर नया उपचुनाव लड़े ? यह चुनौती भी एक भोलापन ही है । वैसे जींद से पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश जेपी कुछ दिन पहले ही हिसार के कांग्रेस भवन में कार्यकर्त्ताओं के बीच कह गये हैं कि मंडी आदमपुर से वे ही चुनाव लड़ेंगे । इस तरह इस चुनौती का कोई औचित्य नहीं । यह भी कह रहे हैं कि कुलदीप कि उनकी इच्छा है कि भव्य ही आदमपुर से उपचुनाव लड़ें । अब यह भाजपा ने देखना है कि टिकट किसे देनी है ? पर चुनौतियों का नया दौर शुरू हो चुका है ।
अभी खुद कुलदीप बिश्नोई कह रहे हैं कि अभी तक राजनीति में मुसाफिर हूं तो भाई मंजिल पर कब पहुंचोगे ? अभी अपनी ही पहचान में लगे हो तो दूसरों को कब पहचानेंगे ?
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।