ग़ज़ल /  अश्विनी जेतली 

ग़ज़ल /  अश्विनी जेतली 
अश्विनी जेतली।

उसकी ओर खिंचा क्यूँ जाऊँ रोज़ाना
उसमें किसकी झलक मैं पाऊँ रोज़ाना

हर पल हर छिन इसी सोच में रहता हूँ
किस ढंग उसका दिल बहलाऊँ रोज़ाना

वो कहते हैं इस महफ़िल में रोना मत
अश्कों को पलकों में छुपाऊँ रोज़ाना

दिल ये चाहे जो मेरे मन में बसते हैं
मैं भी उनके ख़्वाब में आऊँ रोज़ाना

उसके नाम में कुछ तो ऐसी खुशबू है
सुनते ही जो महक मैं जाऊँ रोज़ाना

स्वागत है तू आकर मेरे मन में बस जा
आ तुझको पलकों पे बिठाऊँ रोज़ाना

इस बस्ती में हर कोई ग़म का मारा है
किसे मैं अपना दर्द सुनाऊँ रोज़ाना