पाठकों की नज़र है अश्विनी जेतली की ताज़ा ग़ज़ल
अश्विनी जेतली पत्रकार और बेहतरीन शायर हैं
कभी पत्ता कभी बूटा कभी भटका हवा बन कर
मैं तिरे शहर में गूंजा किया पागल की सदा बन कर
यह है पत्थरों का शहर, यहाँ के लोग पत्थर हैं
तू क्या पायेगा ऐ दिल मेरे सलीबों का ख़ुदा बन कर
बुझा कर राख, चिंगारी को मैंने कहीं छुपा दिया था
कि तुम आये तो दहक उठी मेरी देह शुआ बन कर
हयाती की नदी गहरी है कहीं मैं डूब ना जाऊं
रहना उम्र सारी अब तू कश्ती का मलाह बन कर