हिमाचल : सत्ता की छटपटाहट 

हिमाचल : सत्ता की छटपटाहट 

*कमलेश भारतीय 
इधर संयोग रहा कि मैं चार दिन से हिमाचल के कुल्लू में ही था और जिस दिन चला था, उस दिन हिमाचल में जो राजनीतिक उठा पटक हुई थी, मुझे लग रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि जाने पर सुखविंद्र सुक्खू मुख्यमंत्री हो और लौटने तक कोई और ही मुख्यमंत्री बन चुका हो । ऐसा इसलिए मन में आ रहा था कि कांग्रेस के छह और तीन निर्दलीय विधायक ईमान बदल कर भाजपा को क्रास वोटिंग कर हर्ष महाजन को राज्यसभा में भेज चुके थे, जिससे कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गयी थी । भाजपा नेतृत्व ने राज्यपाल से मुलाकात करने और दावा ठोकने में देर नहीं लगाई थी लेकिन बजट सत्र तक सुक्खू भी स्थिति को नियंत्रण में कर चुके थे और इसके चलते सरकार बच तो गयी लेकिन अभी खतरे के बादल पूरी तरह छंटे नहीं हैं । अभी महारानी प्रतिभा सिंह और उनके बेटे विक्रमादित्य का मन शांत नहीं हुआ । बेशक विक्रमादित्य ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया लेकिन भेदभाव वाले आरोप वापस नहीं लिए । यहां तक कि वे अयोग्य ठहरा दिये गये विधायकों से मिलने चंडीगढ़ भी जा पहुंचे । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिमाचल में कांग्रेस सरकार बहुत संकट में है और एक बार फिर विस्फोट होने का खतरा मंडरा रहा है । 
असल में जिस दिन कांग्रेस को बहुमत मिला था, उस दिन से ही सत्ता पाने की छटपटाहट महारानी के मन में दिख रही थी लेकिन जैसे तैसे उन्हें मना कर सुक्खू को मुख्यमंत्री पद दिया गया । अब यह तो उन्हें देखना था कि नाराज़ खेमे के लोगों को मनाना है या उपेक्षित करना है। यदि मनाने और अपनाने का तरीका अपनाया होता तो यह नौबत न आती लेकिन उपेक्षित और अपमानित करने का तरीका अपनाया, जिससे ऑपरेशन लोट्स चलाना बहुत आसान सा काम हो गया और राज्यसभा चुनाव ने यह सुअवसर भी उपलब्ध करवा दिया। इधर चंडीगढ़ बाहें फैलाये तैयार बैठा था, उधर हिमाचल से विधायक आ गये और हिमाचल की कांग्रेस सरकार संकट में आ गयी । अभी बताया जा रहा है कि चार विधायक और पर तोल रहे हैं और ये पंछी भी कभी भी उड़ सकते हैं और कांग्रेस सरकार धड़ाम से नीचे गिर सकती है । 
कांग्रेस हाईकमान को समय रहते कड़ा कदम उठाना पड़ेगा, नहीं तो सरकार कब गयी या गिर जायेगी, यह सपना टूटने की तरह पता भी नहीं चलेगा । 
सत्ता की छटपटाहट को भांप लेना जरूरी है और नेतृत्व में परिवर्तन करने की जरूरत है, तभी सरकार बच पायेगी, नहीं तो ताश के पत्तों की तरह कब ढेर हो जायेगी, पता भी नहीं चलेगा । 
बारूद के इक ढेर पर 
बैठी है यह सरकार 
कब गिर जाये
कोई कह नहीं सकता!