समाचार विश्लेषण /हिमालय कैफे और हमारी संस्कृति
-*कमलेश भारतीय
एक अलग तरह की खबर । स्काटलैंड से । मसूरी में जन्मी एक लड़की रेका गावा । पहले परिवार के साथ डेनमार्क पहुंची और फिर स्काटलैंड । बाइस साल की उम्र में स्काटलैंड की संसद में कैटरिंग के जिम्मे के दौरान पहली बार दलाई लामा से मिली और अभिभूत हो गयी और खुशी के आंसू बहते गये । आशीर्वाद में दलाई लामा ने कहा कि तिब्बती संस्कृति को बढ़ावा देना जरूरी है और रेका ने वादा कर दिया कि स्काटलैंड में रह कर तिब्बती ही नहीं भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना मेरी प्राथमिकता रहेगी । इस तरह स्काटलैंड में बना हिमालय कैफे जिसमें एक कमरा मेडिटेशन के लिए रखा । खुद दलाई लामा ही इसके उद्घाटन के लिए पधारे । पूरे चौदह साल बीत गये । हिमालय कैफे चलते चलते लेकिन जगह किराये की और अब मालिक इसे बेचना चाहता है जबकि रेका के पास इतने पैसे नहीं कि वह इसे खरीद सके । कुल मिला कर 46 लाख रुपये चाहिएं । दलाई लामा ने भी रेका के हिमालय कैफे को बचाने में उसकी मदद की अपील की है और कुछ उम्मीद बनी है ।
हो सकता है रेका इसे बचा ले जाये और हो सकता है उसे बचाने में सफलता न मिल पाये लेकिन तिब्बती व भारतीय संस्कृति को विदेश में बचाने और फैलाने के उसके प्रयासों की भरपूर सराहना होनी चाहिए । हम अपने देश में रह कर भी अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं । गानों में भी विदेशी सुर ताल ज्यादा सुनाई देने लगी है । दूसरे दलाई लामा जैसा व्यक्तित्व भी मुश्किल से आता है जिनके एक स्पर्श मात्र से, आशीर्वाद से रेका जैसी युवा अपना अच्छा भला कैटरिंग का काम छोड़कर भारतीय संस्कृति के लिए काम करने लगे ।
धर्मशाला जब भी जाना हुआ मैक्लोडगंज भी गया । इतनी शांति मिलती है वहां कदम रखते ही कि अवर्णनीय है । जो कोई भी धर्मशाला जाता है शायद ही ऐसा कोई हो जो मैक्लोडगंज न जाये । दलाई लामा के व्यक्तित्व से न जाने कितने लोग प्रेरित होते होंगे ।
हमें अपनी संस्कृति की रक्षा और फैलाने का जज़्बा रेका गावा से लेना चाहिए जो अपनी रोज़ी रोटी को भी संस्कृति से जोड़ने में जुटी है ।
-*पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।