गुजवि हिंदी विभाग में हिंदी दिवस

कविता हमें जीने की समझ देती है: प्रो नरेंद्र बिश्नोई

गुजवि हिंदी विभाग में हिंदी दिवस

जला के खुद को यहां रोशनी करनी होगी: डाॅ रश्मि बजाज कबीरन
-कमलेश भारतीय
हिसार: कविता हमें जीने की समझ देती है और कवियों की रचनाएं खोज खोज कर पढ़ने से हमें लिखने की प्रेरणा मिलती है । यह कहना है गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो नरेंद्र बिश्नोई ने हिंदी दिवस पर विभाग द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी का श्रीगणेश करते हुए कहे। उन्होंने कहा कि गुलाब को बेनीपुरी सौंदर्य का तो निराला पूंजीपति का प्रतीक मानते हैं। विभाग द्वारा समय समय पर अनेक आयोजन करवाये जाते हैं, जिससे पाठ्यक्रम से हटकर छात्र कुछ सीख पायें। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो किशनाराम बिश्नोई ने की और कहा कि छात्रों की साहित्य में रूचि बढ़ाने व लेखन कला की ओर आकर्षित करने के लिए विविध प्रतियोगिताओं का आयोजन समय समय पर करते रहना चाहिए। हिंदी विभाग की प्रभारी डाॅ गीतू धवन‌ ने प्रारम्भ में कवियों का स्वागत किया और स्वयं भी काव्य पाठ किया। विभाग की प्राध्यापिकायें डाॅ शर्मिला हुड्डा व डाॅ कल्पना व छात्र छात्राओं की उपस्थिति ने काव्य गोष्ठी की गरिमा बनाये रखी।काव्य गोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के तौर पर भिवानी से आईं डाॅ रश्मि बजाज कबीरन ने बहुत प्रभावशाली व मार्मिक कविताओं का पाठ किया ! उन्होंने कहा:
जला के खुद को यहां, रोशनी करनी होगी 
यूं विरासत में अंधेरे नहीं छोड़े जाते।

डाॅ रश्मि कबीरन ने एक और गीत में कहा:
वो कब औरों की बाट देखे है
जिसे गंगा ज़मीन पे लानी है! 

नीलम सुंडा ने दो कविताओं का पाठ किया और बचपन के खिलखिलाते रविवार को याद करते कहा : 
हमारा बचपन का खिलखिलाता रविवार 
रोटी, कपड़ा और मकान में मशगूल हो गया।

हांसी से आईं युवा कवयित्री रिम्पी लीखा ने हिंदी दिवस पर कहा:
देखो, देश के माथे पर
कैसे सजी है हिंदी।
एकता में हमें बांधे रखती
देश की शान है हिंदी।

रिम्पी ने कोलकाता रेप कांड पर इंसाफ करो गीत भी प्रस्तुत किया।
भिवानी से आमंत्रित डाॅ अपर्णा बतरा ने भी प्रभावशाली काव्य पाठ किया। 
काव्य गोष्ठी का संचालन करते हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्वाध्यक्ष कमलेश भारतीय ने अपने नव प्रकाशित काव्य संग्रह 'लोग भूल जाते हैं' में से इसी कविता का पाठ करते कहा : 
अंधेरी रातों में दहलीज पर
दीया जलाकर रखने वालों को 
लोग भूल जाते हैं 
और दूसरों के कंधों को 
इस्तेमाल करते हैं 
सीढ़ियों की तरह।

सभी कवियों को प्रो किशनाराम बिश्नोई ने विभाग की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट किये!।