कहानी/आधी रात का इजहार
‘‘कितना मधुर है मेरी कल्पना में भी तुम्हारा होना । इसे बताने के लिये मेरे पास शब्द नहीं है । मुझे अच्छा लगता है, कोलाहल से दूर तुम्हारे बारे में ही सोचते रहना। घर में मौजूद लोगों की भीड़ से नजरें बचा कर मैं हमेशा एक कोने की तलाश में रहती हूं जहां मैं और तुम….नहीं, तुम नहीं, केवल तुम्हारे खयालात। लेकिन जिंदगी की निर्दयता को देखो, मुझसे, तुमको तो छीन ही लिया और अब तुम्हारे खयालों से भी मुझे दूर कर ……., कहते-कहते सलोनी का गला भर्रा गया ।
सलोनी ने कहा कि तुम…… तुम क्यों चले गये ।…नहीं तुम नहीं गये । मैं ही चली गयी । तुमने मुझे रोकने की कोशिश क्यों नहीं की। इस्तीफा देने के बाद मैं पूरे दिन आफिस के आस-पास ही थी, तुमसे मिली नहीं, तो क्या हुआ, तुमने मुझे क्यों नहीं बुलाया । तुमने क्यों नहीं कहा कि मत जाओ।’’
सलोनी ने पंकज के करीब आते हुये कहा, ‘‘मेरी खुशियां बहुत छोटी-छोटी है । मुझे इस बात का अहसास हो गया है कि मेरी खुशियां तुमसे ही हैं । मैं हमेशा से यह समझती आ रही थी कि सब कुछ पैसा ही है। हम मिल कर उतने में ही गुजारा कर लेंगे जितना हमारे पास होगा । तुम कहा करते थे न कि लौट आओ दिल्ली । देखो मैं लौट आयी हूं।’’
सलोनी ने कहा, ‘‘जैसा तुम कहोगे । वैसा ही मैं करुंगी । मुझे याद है कि तुम कहा करते थे कि पैसा सब कुछ नहीं है और मैं कहती थी कि पैसा ही सब कुछ है । तुम कहते थे कि पैसा नहीं जीवन में शांति और प्रेम होना चाहिये । अगर शांति नहीं है तो अरबों रुपये हो जाये सुख नहीं मिलेगा । लेकिन मैने हमेशा तुम्हारी बात को हंसी में उड़ा दी । तुम ठीक कहा करते थे।’’
सलोनी ने पंकज के और करीब आ गयी और रोते हुये उसकी कमीज पकड़े लगातार बोले जा रही थी । वह पंकज से जितना बोल रही थी, उतना ही उसे लगता कि अभी उसकी बात समाप्त नहीं हुयी है । पंकज भी चुपचाप उसे लगातार सुन रहा था । सलोनी बिना रुके अनवरत बोले जा रही थी ।
पंकज ने कुछ बोलना चाहा तो सलोनी ने उसे चुप करा दिया और कहा, ‘‘ मेरा अब अपना कुछ नहीं रहा। मैं जब से दिल्ली से गयी हूं……या …ऐसे कहें कि…तुम्हें छोड़ कर गयी हूं तब से मैं बेचैन हूं ।’’
‘‘ऐसा लगता रहा कि सब कुछ मिल जाने के बावजूद दिल का एक कोना खाली है । मैने उस खालीपन की अनदेखी करने की कोशिश की लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पायी। फिर मैने महसूस किया कि जीवन के इस निर्वात को तुम्हारे बगैर पाटा नहीं जा सकता है ।’’
‘‘तुम्हारे इश्क में मै अब खो चुकी हूं । मैने कई बार तुमसे बात करने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो सका था। इस दुनिया में मैं भी हूं, क्या तुम्हें इसकी कोई खबर नहीं थी, सलोनी की आवाज उसके शब्दों का साथ नहीं दे रही थी । वह रोने लगी और बिना किसी असहजता के वह पंकज से लिपट गयी ।’’
सलोनी खुद नहीं समझ पा रही थी कि पंकज को देखते ही उसे मुझे क्या हो गया था । उसने दोबारा कहा- मैं दिल्ली आ गयी हूं, अब । हमेशा के लिये । तुम कहा करते थे न, दिल्ली आने के लिये तो लो, मैं अब आ गयी हूं । मैं अब यहां से नहीं जाने वाली ।’’
सलोनी की इस हरकत से पंकज असहज हो गया । उसने सलाेनी के दोनों बांह पकड़ कर अपने से अलग करते हुये कहा कि कई बार हम जैसा सोचते हैं या करते हैं, वैसा होता नहीं है ।
इसी बीच किसी ने पंकज को आवाज लगायी, पंकज ने अपनी जेब से रुमाल निकाल कर सलोनी को दिया और कहा कि आंखें पोछ लो, क्योंकि यहां बहुत से ऐसे लोग हैं जो हम दोनों को जानते हैं। इस मौके पर तुम्हारा ऐसा चेहरा और मेरे साथ तुम्हारा यहां खड़ा होना बहुतों को गलतफहमी में डाल सकता है ।
उसने मेरे हाथों में रुमाल पकड़ाते हुये कहा, ‘‘सलोनी, तुमने बड़ी देर कर दी आने में’’ और अब तुम्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिये । ऐसा बोल कर वह वहां से चला गया ।
2
पंकज के जाने के बाद सलोनी वहीं मैरिज हॉल के बाहर बने एक बेंच पर बैठ गयी और सोचने लगी कि अजनबी शहर और यह अकेलापन उसने खुद ही तो चुना था, जिसमें पैसे थे, नाम था लेकिन कोई अपना नहीं था । पंकज भी नहीं । वह स्वयं ही पुराने दोस्तों को पीछे छोड़ आयी थी, पंकज को भी । पंकज ने कई बार आगाह किया था, जब वह जा रही थी, तब भी उसने कहा था कि रुक जाओ । लेकिन सलोनी ने कहां सुनी थी पंकज के दिल की आवाज को और उसने यह भी तो नहीं सुना था कि वह उससे कितना प्यार करता है ।
विवाह के भीड़-भाड़ वाले माहौल और वहां जारी शोर के बीच वह अतीत में पहुंच गयी, जब पंकज से उसकी पहली मुलाकत हुयी थी। दोनों पहली बार दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में मिले थे। दोनों का एक साथ चयन हुआ था। कंपनी में उनका ओरियेंटेशन कार्यक्रम था और इसी सिलसिले में वे वहां पहुंचे थे ।
उन दोनो के अलावा 28 और लोग थे, जिनका अखिल भारतीय स्तर की लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के बाद चयन हुआ था । सभी को ओरिएंटेशन कार्यक्रम में शामिल होना अनिवार्य था । ऑफिस के सेमिनार हॉल में सलोनी पहले से बैठी थी, तभी उसने देखा कि एक स्मार्ट युवक भागा-भागा आया और अपनी सीट पर जा कर चुप-चाप बैठ गया।
सलोनी के बगल वाली सीट उसके लिये आरक्षित थी । वह वहां जा कर बैठा और हांफने लगा, जिसे उसने छिपाने की कोशिश की । लेकिन, सलोनी ने उसकी तरफ पानी का बोतल बढ़ाते हुये कहा लगता है कि आप दौड़ कर आये हैं ।
थोड़ी ही देर में सलोनी ने फिर से उसे टोका - हाय, कैसे हैं आप । कहां से आते हैं । क्या नाम है आपका । अपने बगल में रोबोट की तरह चुपचाप बैठे युवक से सलोनी ने पूछा। युवक ने हड़बड़ाते हुये कहा कि आराम से एक-एक करके पूछिये ।
सलोनी ने पूछा- क्या नाम है आपका । उसने कहा - जी, पंकज । सलोनी ने चुटकी लेते हुये पूछा - जी पंकज या सिर्फ पंकज । उसने भी उसी अंदाज में कहा - सिर्फ पंकज नहीं । पंकज । फिर दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्करा दिये थे ।
इसके बाद ओरिएंटेशन के दौरान दोनों एक साथ बैठने लगे। ऑफिस के इतर भी बातचीत होने लगी थी। बातचीत के बाद मुलाकात का सिलसिला चल पड़ा। पंकज और सलोनी दोपहर का खाना भी साथ खाने लगे और चाय भी एक साथ पीने लगे। इसके साथ ही ऑफिस में दोनों के बारे में चर्चाओं का दौर भी शुरू हो गया था। सोचते हुये सलोनी मुस्करायी ।
दोनों को एक दूसरे के बारे में बहुत सी जानकारी हो गयी थी। सलोनी ने बताया कि वह मंडी हाउस में रहती है और उसके पिता एक सरकारी अधिकारी हैं । पंकज ने बताया कि वह बिहार से है और यहां नौकरी के सिलसिले में आया है तथा कृष्णानगर में अपने एक रिश्तेदार के पास ठहरा है ।
इसके बाद मंडी हाउस में भी दोनों के मुलाकात का सिलसिला चल पड़ा । ऑफिस से निकलते समय दोनों एक साथ आते और मंडी हाउस में रुकते। उनका ठिकाना हमेशा साहित्य अकादमी के पीछे वाला लॉन होता था जहां वह बैठ कर दुनिया भर की बातें किया करते थे ।
एक दिन दोपहर के लंच का कार्यक्रम मंडी हउस में बना था, साथ वाले कुछ सहकर्मी भी थे। अभी ऑफिस के गेट पर पहुंचे ही थे कि एक अन्य सहकर्मी मोटरसाइकिल लेकर आ गये। सलोनी उसके साथ बैठ गयी, इस पर पंकज ने उसकी तरफ देखा तो…वह उतर कर उसके पास आयी और बोली, मेरे पैर मे दर्द है, मैं उसे अपना भाई मानती हूं और वह भी मुझे अपनी बहन मानता है, मुझे जाने दो । इस पर उसने भी कहा कि हां-हां सलोनी मेरी बहन है।
वहां मौजूद सहर्मियों ने इस पर जोर से ठहाका लगाया था । पंकज झेंप गये थे हालांकि, वह समझ नहीं पाया कि सलोनी ने क्या कह दिया।
खाना खाने के बाद सभी ऑफिस आये थे, तो पंकज और सलोनी के बीच कोई बातचीत नहीं हुयी, क्योंकि काम का दबाव था । छुट्टी के समय सलोनी पंकज के पास पहुंची और चलने के लिये कहा तो उसने कहा कि उसके पास अभी कुछ अधिक काम है और वह नहीं जायेगा ।
पंकज ने कहा- तुम चली जाओ । मुझे निकलने में कुछ देरी होगी । सलोनी ने कहा - अरे रोज तो तुम कहा करते थे कि रूक जाओ, कुछ देरी होगी । आज क्यों बोल रहे हो कि चली जाओ ।
पंकज ने झल्लाते हुये कहा था - तुम जाओ अभी। मैं बाद में मिलता हूं । मुझे काम समाप्त करने दो । इसके बाद सलोनी सरसराती हुयी निकल गयी थी ।
3
काम समाप्त करने के बाद पंकज निकले और सीधे साहित्य अकादमी पहुंचे, जहां सलोनी उसके इंतजार में बैठी थी। पंकज को पता था कि वह वहीं होगी । सलोनी ने जाते ही पंकज पर सवालों की बौछार कर दी । मैं अमित के साथ गयी तो तुम्हें बुरा लगा। मुझ पर तुम इसीलिये झल्लाये थे । मैने तुम्हें बताया था कि मेरे पैर में दर्द है । क्या हो गया अगर मैं तुम्हारे साथ नहीं गयी ।
पकंज ने कहा - रूको । तुम जो बातें कह रही हो वह तो मेरे दिमाग में भी नहीं है । तुमको जिसके साथ मर्जी जा सकती हो , मैं क्यों रोकूंगा और मेरे रोकने से तुम रुक जाती क्या । मेरे रोकने से तो तुम रुकने से भी रही । ऐसे भी मेरा स्वभाव किसी के ऊपर अपनी बात थोपने का नहीं है । मुझे आज अतिरिक्त काम दे दिया था बॉस ने । इस वजह से थोड़ा दबाव था, और कुछ नहीं ।
इस पर सलोनी ने गंभीर होकर बोला - तुमने ये कह कर……। वह चुप हो गयी । पंकज ने पूछा- क्या, यह कह कर …. क्या । सलोनी ने कहा- कुछ नहीं । दोनों चुप हो गये ।
पंकज ने कुछ कहना चाहा, इस पर सलोनी ने कहा- मुझे पता है कि मेरे प्रति तुम्हारे मन में सॉफ्ट कार्नर है और इसलिये तुम्हारा इस तरह का व्यवहार रहा मेरे साथ । पंकज ने कहा कि अरे नहीं । ऐसा कुछ नहीं कि मैने …… ।
सलोनी ने तपाक से पूछा- क्या मेरे प्रति तुम्हारे मन में सॉफ्ट कार्नर नहीं है । पंकज ने कहा - नहीं । पंकज ने फिर पूछा - अच्छा ये बताओ कि ये सॉफ्ट कार्नर का मतलब क्या होता है । इस पर सलोनी ने उसे समझाया - जैसे मोहब्बत का मतलब अगर चार चम्मच चीनी है तो सॉफ्ट कार्नर का मतलब तीन चम्मच चीनी है।
शादी समारोह के कोलाहल के बीच सोचते हुये सलोनी मुस्काराते हुये बड़बड़ाई - उस बुद्धू को सॉफ्ट कार्नर का मतलब भी नहीं पता था । सलोनी फिर अतीत के पन्ने पलटने लगी । उसने पंकज को कॉल कर बताया था कि उसने इस्तीफा देने का मन बना लिया है, क्योंकि इस कंपनी में कोई ग्रोथ नहीं है। पंकज ने पूछा - मतलब ।
सलोनी ने कहा - यहां पैसा नहीं है । पंकज ने कहा - क्या होगा पैसा लेकर । यहां शांति है । दूसरे स्थान पर शांति होगी या नहीं, इसकी कोई गांरंटी नहीं है। सलोनी ने कहा-पैसा है तो सब कुछ है । शांति भी आ ही जायेगी ।
पंकज ने कहा - जीवन में पैसा नहीं, शांति और प्रेम होना चाहिये । अगर शांति नहीं है और प्रेम नहीं है तो तो अरबों रुपये हो जाये सुख नहीं मिलेगा। तुम यह देखो कि तुम्हारे आस-पास प्रेम करने वाला व्यक्ति है कि नहीं है ।
सलोनी ने पंकज के हर तर्क को काटते हुये उसने कहा - अमित के घर पर एक छोटा सा गेट टूगेदर है । चार पांच लोग ही आ रहे हैं । तुम भी आओ । आज ही मैने इस्तीफा दे दिया है और कल तुम्हारा अवकाश है, इसलिये मैने कल ही यह कार्यक्रम रखा है ।
अमित के घर पर पर आयोजित हुये इस कार्यक्रम में पंकज कुछ देर से पहुंचा था। वहां पहुंचते ही अमित ने हंसते हुये कहा कि अब पंकज भी इस्तीफा देकर बेंगलुरु चला जायेगा । पंकज ने आश्चर्य मिश्रित स्वर में पूछा - बेंगलुरू कौन जा रहा है । सबने एक स्वर में कहा - सलोनी । पंकज ने आश्चर्य में पूछा- क्या । सलोनी की उपस्थिति में ही वहां मौजूद उनके सहयोगियों ने सलोनी का नाम लिये बगैर पंकज पर टिप्पणियां करने लगे । एक ने कहा- यह प्रेम कहानी अब अधूरी रह जायेगी।
वहां उपस्थित सलोनी की दोस्त प्रेरणा ने शायद पंकज की मुस्कुराहट के पीछे की बेचैनी को पहचाान लिया था। उसने कहा- प्रेम और शांति का तुम्हारा ज्ञान लगता है, सलोनी के पैसों की परिभाषा में दब गया है ।
पंकज बेहद भारी मन से अमित के घर से निकले । पंकज के साथ मेट्रो तक जाने वालों में सलोनी और प्रेरणा भी थी। सभी चुप-चाप चल रहे थे। सन्नाटे के बीच प्रेरणा ने कहा- तुम दोनों एक बात बताओ, दोनों एक दूसरे से प्यार करते हो । दोनों ने कुछ नहीं बोला था । मेट्रो पहुंच कर प्रेरणा टोकन लेने गयी तो पंकज ने कहा- तुम क्यों जा रही हो । तुम यहां रूक क्यों नहीं जाती ।
सलोनी ने पूछा - किसके बल पर रुक जाउं यहां । पंकज ने कहा- मैं हूं न । सलोनी ने कहा- कितने पैसे मिलते हैं । पंकज ने कहा - तुम्हें पता ही है । सलोनी ने कहा- उससे तीन गुनी सैलरी है वहां, और जितना पैसा तुम्हें मिलता है, उतना तो मैं कपड़े पर ही खर्च कर देती हूं । बाकी काम कैसे चलेगा । जिंदगी में पैसा है तो सब है । पैसा के बिना जीवन कुछ नहीं है, मोहब्बत भी नहीं । पंकज बाबू, तुम नहीं समझोगे। पंकज चुप हो गया ।
बेंगलुरू जाने के करीब डेढ़ साल तक सलोनी पंकज को फोन करती रही थी । इन डेढ़ साल में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि पंकज ने फोन किया हो । हमेशा सलोनी ही फोन करती और करीब एक से डेढ़ घंटे तक दोनों की आपस में बातचीत करते थे । प्यार मोहब्बत की बातें भी, लेकिन, यह बात फ्लर्ट करने के अंदाज में होती ।हालांकि, दोनों एक दूसरे के मोहब्बत में थे और इंतजार में थे कि पहल सामने वाला करे ।
एक दिन पंकज ऑफिस से लौटने के बाद कुछ काम कर रहे थे कि रात करीब एक बजे सलोनी का फोन आया । उसने फोन करते ही पूछा- तुम मुझसे विवाह करना चाहते हो । पंकज ने कहा - ये कैसा सवाल है । क्या तुम फ्लर्ट कर रही हो मेरे साथ । सलोनी ने रुंधे गले से कहा - एक बजे रात को फोन कर रही हूं, तो यह तुम्हें फ्लर्ट लगता है ।
पंकज ने कहा- देख लो, मेरी सैलरी अब भी तुमसे आधी है । इतना कपड़ों पर ही खर्च कर लोगी, तो बाकी सब खर्च तुम्हें ही करना होगा । सलोनी ने गंभीर होकर कहा- तुम मुझसे शदी करोगे या नहीं । पंकज ने कुछ और कहना चाहा…… तो सलोनी ने फिर सवाल दोहराया ।
पंकज ने कहा- मैं तो तुम्हारे बेंगलुरु जाने से पहले ही संकेत दिया था । पर तुमने तो…. । सलोनी ने कहा- मेरे सवाल का सीधा जवाब दो । फिर पूछा- कितना वक्त लोगे । मैं तुमसे बेहद प्यार करती हूं । उस दिन से, जब से तुमसे मैने नाम पूछा था । सलोनी फोन पर ही रोने लगी । पंकज ने कहा- आ जाओ दिल्ली । मैं भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूं ।
सलोनी ने दोहराया- सच में शादी के लिये तैयार हो । पंकज ने कहा -हां । रात के डेढ़ बजे हैं । तुम अभी फोन कर मुझसे इतना गंभीर होकर पूछ रही हो, तुम स्वीकार कर रही हो तो, मैं क्या तुम्हें गलत कहूंगा । सलोनी ये मेरे मोहब्बत का इजहार है, आधी रात का इजहार, ‘‘मैं भी तुमसे बेहद मोहब्बत करता हूं ।’’
तुम बताओ तुम क्या चाहती हो। इस पर उसने रुआंसी होकर कहा, अरे यार, यह बात तुमने डेढ़ साल पहले कह दिया होता तो शायद मैं आज दिल्ली में ही होती । पंकज ने कहा- तो क्या हुआ । अब दिल्ली आ जाओ । सलोनी ने कहा- हम्म ।
कुछ देर चुप रहने के बाद …….. सलोनी जोर-जोर से हंसने लगी और बोली तुम पागल हो गये हो । मैं तो बस तुमसे मजे ले रही थी । पंकज ने कहा - लेकिन मैं मजे नहीं ले रहा था, मैं सच में तुमसे मोहब्बत करता हूं…… । इस पर सलोनी ने कहा-तो जा कर अपना इलाज कराओ।
पंकज ने कहा- सलोनी, मैं तो इलाज करा लूंगा, लेकिन ध्यान रखना कि कहीं जिंदगी तुमसे मजा न लेने लगे, और फोन काट दिया, इसके बाद फिर कभी सलोनी का फोन पंकज के पास नहीं आया । सलोनी की आंखें नम हो गयी ।
वह बेंच पर बैठे- बैठे सुबकने लगी, और खुद से बोली - तुमने ठीक कहा था । समय अब मेरे साथ मजे कर रहा है । मैं कितनी बेचैन हूं और तुम हो कि……,
तभी किसी ने सलोनी को आवाज दी, तो वह अतीत से बाहर निकली । आखें पोछते हुये उसने देखा तो यह प्रेरणा थी । प्रेरणा ने कहा कि तुम यहां क्यों बैठी हो । अंदर चलो । सब तुम्हें ही खोज रहे हैं ।
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सलोनी एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करती थी और अपने दोस्त की शादी में शामिल होने के लिये दिल्ली आयी थी, वहीं वह पंकज से मिली। करीब छह साल बाद वह उससे मिली थी, और खुद को रोक नहीं पायी । उसने बिना किसी बात की परवाह किये सबके सामने ही पंकज के सामने अपने दिल के उद्गार प्रकट कर दिये थे ।
सहेली का विवाह और सुबह उसकी विदाई के बाद सलोनी प्रेरणा को लेकर अपने घर आ गयी थी । सलोनी के पिता बड़े सरकारी अधिकारी थे और सरकारी बंगले में रहते थे ।
अपने कमरे में पहुंचते ही सलोनी जोर- जोर से रोने लगी और प्रेरणा को कल रात हुयी पंकज से अपनी बात-चीत के बारे में बतायी ।
सलोनी ने कहा कि प्रेरणा, मैं तो यह सोच कर परेशान हो रही हूं कि पंकज ने किस बेरुखाई से मुझे अपने से अलग कर दिया और बिना कुछ बोले केवल इतना ही कहा कि उसने आने में बड़ी देर कर दी और अब उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिये ।
प्रेरणा ने टेबल पर रखे गिलास का पानी उसकी ओर बढ़ाया । पानी पीने के बाद सलोनी ने कहा - पंकज से मुझे इस बेरुखाई की उम्मीद नहीं थी….. अभी वह कुछ और कहना चाह रही थी कि प्रेरणा ने कहा- और तुमने, तुमने कितनी बेरुखाई की उसके साथ, यह याद है या भूल गयी ।
प्रेरणा की बात से सलोनी अचानक अवाक हो गयी । सलोनी ने कहा कि क्या बोल रही है तू । प्रेरणा ने कहा - सबकुछ केवल अपनी तरफ से मत सोचो । यह भी तो समझो कि उसे कितनी तकलीफ हुयी होगी जब तुमने उसके साथ बेरूखाई की थी ।
सलोनी ने कहा - दिल्ली और पंकज को छोड़ कर एक अजनबी शहर में जाने का फैसला मेरा ही था। उसने तो कहा भी कहा था कि इसी शहर में तुम्हारे सभी अपने हैं, दोस्त, रिश्तेदार, अपने, पराये, तो पैसों के लिये इसे क्यों छोड़ना ।
उसने कहा - लेकिन, जब मैं मुंबई पहुंची तो मुझे ऐसा लगा कि मेरा सब कुछ दिल्ली में रह गया है। मैं यह स्वीकार करना ही नहीं चाहती थी कि मेरी यह बेचैनी पंकज के लिये थी । मैने बहुत कोशिश की थी कि मैं रूक जाऊं, लेकिन मैने उसकी कहां सुनी थी ।
सलोनी ने पूछा - मैने क्या बेरुखाई की थी । प्रेरणा ने कहा - अमित के घर से लौटते समय तुमने मेट्रो स्टेशन पर उसे क्या कहा था, जितनी तुम्हारी सैलरी है उतना तो मैं अपने कपड़ो पर खर्च करती हूं । तुम्हारे कई बार के उकसावे पर जब आधी रात को उसने अपने मोहब्बत का इजहार किया था, तो तुमने क्या कहा था, कि जा कर अपना इलाज करा लो । क्या यह बेरुखाई नहीं है।
प्रेरणा ने कहा - वह रिश्ते में बहुत ही ईमानदार है। तब भी था और अब भी है । सलोनी ने पूछा- तुम्हें कैसे पता । प्रेरणा ने कहा- उसने ही मुझे ये सारी बात बतायी है।
सलोनी ने कहा- मैं एक बार पंकज से मिलना चाहती हूं । प्रेरणा ने कहा- उसकी छुट्टियां हैं और वह आज शाम की ट्रेन से वह अपने घर जा रहा है । नयी दिल्ली में तुम मिल सकती हो । इसके बाद प्रेरणा वहां से चली गयी ।
शाम को जब सलोनी नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंची और पंकज से पूछा - क्या तुम मुझसे शादी करोगे । पंकज ने ट्रेन में सवार होते हुये कहा - अपने आपको स्थिर करो। ट्रेन का सिग्नल हो चुका था । सलोनी ने कहा - तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया । पंकज ने मुस्कराते हुये कुछ कहा ……तब तक ट्रेन चल पड़ी थी । पंकज ने कुछ और कहा था लेकिन सलोनी केवल इतना ही सुन पायी थी - ‘‘मेरी शादी तय हो चुकी है ……’’
सलोनी बस ट्रेन और पंकज को जाते हुये देख रही थी ।
समाप्त
लेखक परिचय:
लेखक टी शशि रंजन एक वरिष्ठ पत्रकार हैं।