लघुकथा /असलियत
-आओ भाई, कैसे आना हुआ ?
-काम ही खींच कर लाता है ,,
-चलो , काम के बहाने ही सही । मुलाकात तो हुई । फरमाइए ।
-आजकल आप शिक्षा विभाग में अधिकारी हैं न ?
-कोई शक ?
-शक नहीं , सेवा ,,
-बताइए । क्या सेवा कर सकता हूं आपकी ?
-मेरे छोटे भाई की इंटरव्यू है आपके पास । आगे आप खुद समझदार हैं
-समझदार तो आप भी कम नहीं ।
-फिर समझा दीजिए न ।
-आपको वस्तुस्थिति बता देता हूं । किसी मिनिस्टर फिनिस्टर को पकड़िए ।
-क्यों ? आप किस मर्ज की दवा हैं ? कैसी दोस्ती?
-हम? हम सिर्फ शो विंडो की कठपुतलियां हैं । हमारे हाथों में कच्ची पेंसिलें पकड़ा दी जाती हैं । हम तो पूरे नम्बर दे देंगे पर कच्ची पेंसिल का क्या भरोसा ? कब रेजर फेर दिया जाये? कब बाद में कोई रबड़ रगड़ दे उन नम्बरों पर ,,,?
-आप अफसर तो पक्के हो न ?
-हां । अफसरी को पक्की रखने के लिए ही तो कच्ची पेंसिलें पकड़ना मंजूर करते हैं । नहीं तो,,,
-नहीं तो क्या हो ?
-जैसे आपके भाई के नम्बरों पर रबड़ फिर सकती है , वैसे ही हमारे करियर पर भी ,,,
-कमलेश भारतीय