लघुकथा/चाय पानी 

लघुकथा/चाय पानी 

कमलेश भारतीय

-सर... 
-कहो । क्या बात है ? 
-सर, वो अधिकारी हरिजन छात्रवृत्ति पास करने के प्रति छात्र पैसे मांग रहा है । 
-कोई जरूरत नहीं इसकी । 
-फिर बिल पास नहीं होगा, सर  । 
-न हो । बोलो जो आब्जेक्शन‌ लगाना हो लगा दो । 
वह मेरा संदेश लेकर ऑफिस के अंदर‌ चला गया । कुछ पल बाद वापस आया । 
-सर, वे कहते हैं कि चलो, प्रति छात्र न सही लेकिन एक अच्छी चाय पानी लायक पैसे तो दे दो । 
-बोलो। जल्द प्रबंध करके बताते हैं । 
वह संदेश दे आया, तब मैंने उसे अपनी बाइक के पीछे बिठाया और जान पहचान वाले मित्र अधिकारी के पास पहुंच गया । 
अधिकारी ने स्वागत् किया और चाय पानी पूछा तो मैंने कहा कि चाय पानी तो पीयेंगे लेकिन पहले अपने राजस्व अधिकारी को भी बुला लीजिये । 
-क्यों? 
-क्योंकि उन्होंने मुझसे चाय पानी की फरमाइश की है । सोचा, जब आप, पिलायेंगे तब उन्हें भी पिला दूंगा । मेरे पास इतने पैसे कहां कि हरिजन छात्रों के पैसे काट कर अधिकारी को चाय पिला सकूं? 
वे मित्र अधिकारी बहुत हंसे और सारा माजरा समझ गये । तुरंत उस राजस्व अधिकारी को फोन कर बुला लिया । 
वह मुझे तो पहचानता नहीं था लेकिन क्लर्क को देखकर कुछ चौंका । 
-हां भई, ये प्रिंसिपल महोदय आपको चाय पानी पिलाने मेरे पास आ गये हैं ! बोलो चाय मंगवा लूं ?
राजस्व अधिकारी हाथ जोड़कर खड़ा हो गया- नहीं सर । बिना चाय के ही ठीक है । 
-फिर इनको ऑफिस जाकर चाय पानी पिलाओ और इनके बिल पास कर दे दो । 
उस अधिकारी को काटो तो खून नहीं । सिर झुकाये बाहर निकल आये ।