लघुकथा/दहशत
ऐसा लग रहा था जैसे उसके पति का कोई पीछा कर रहा था । तभी तो पति किसी एक दुकान पर चैन से रुकता नहीं था । रंग बिरंगी रोशनियों में चमकती दुकानों प पत्नी बच्चे के लिए खिलौना तलाशती, भाव पूछती और इससे पहले कि दुकानदार के साथ मोल तय कर पाती कि पति महोदय अगली दुकान पर पहुंच चुके होते या भीड़ में खो चुके होते ।
हर बार ऐसा ही हुआ । खिलौना हाथ में आते आते रह गया , या दुकानदार ने छीन लिया या बेबसी में वहीं रख देना पड़ा । राजधानी के हसीन बाजार में एक हसीन शाम बिना कुछ खरीदे ही गुजर गयी । बाज़ार से वे ऐसे बच कर निकले जैसे किसी कसाई की छुरी के नीचे से शिकार बच निकले ।
पत्नी ने पति से पूछा- आखिर हम मुन्ने के लिए एक खिलौना खरीदने की हसरत दिल ही में लिए क्यों लौटे ?
- महंगाई हमारा बुरी तरह पीछा कर रही है । कहीं वह पूरी तरह हमें निगल न जाये , इसलिए मैं तुम्हें बाज़ार से भगा लाया ।
पति ने हांफते हुए कहा और खाली हाथों में मुंह ढांप कर रोने लगा ....किसी बच्चे की तरह , जिसे एक मुद्दत से मनपसंद खिलौना न मिला हो ।
-कमलेश भारतीय