लघुकथा/मोमबत्तियां

-कमलेश भारतीय
-मां ये मोमबत्तियां जलाकर क्यों चल रहे हैं अंकल लोग ?
-बेटा, ये कुछ अक्ल के अंधों को रोशनी दिखाने निकले हैं !
-मम्मी, मोमबत्तियां पिघलने लगेंगीं तो गर्म मोम उंगलियों पर गिरेगा, ये तो किसी का क्या बिगड़ा? अपना ही हाथ जलेगा !
-बात तो ठीक है तेरी । फिर तेरी नज़र में क्या करना चाहिए ?
- मैं तो कहती हूँ कि ये मोमबत्तियां लेकर उस पापी को जलाओ, जिसने यह गंदा काम किया है !
मां अपनी नन्ही सी बेटी का मुंह देखती रह गयी !!