लघुकथा/मिठास
शालिनी की शादी को दस वर्ष हो चले थे। इन वर्षों में कितना कुछ बदल चुका था। कितने मौसम बदल चुके थे। यही सब सोचते हुए उसने सुबह की चाय बनाई और एक कप चाय देव को देने के लिए बेडरूम में चली गई। देव उस समय अख़बार पढ़ रहे थे। शालिनी ने चाय का कप देव के हाथों में दिया और कमरे की साफ़ सफाई करने लगी। देव ने चाय की घूँट भरी और चिल्लाया, "अरे चाय तो फीकी पड़ी है। कितनी बेस्वाद लग रही है। कड़वी। लगता है तुम चाय नहीं, काढ़ा बना कर लाई हो।" पति के मुँह से ये शब्द सुन कर शालिनी परेशान हो गई। उसे अच्छी तरह याद है कि उसने चाय में चीनी डाली थी। उसने देव के हाथ से चाय का कप पकड़ लिया और कहा, "लाओ मैं इस में और चीनी डालकर लाती हूँ।" उसने देव के हाथ से कप लिया और रसोई में चले गई। रसोई में जा कर उसने चाय का एक घूँट भरा। चीनी बिलकुल ठीक थी। दरअसल देव का व्यवहार अब पहले जैसा नहीं रहा था। हर चीज़ में नुक्स निकालने लगा था। छोटी छोटी बात पर गुस्सा करने लगा था, झगड़ने लगा था। उसे स्मरण है कि शादी के बाद जब पहली बार उसने चाय बनाई थी तो देव ने चाय पी कर कितनी तारीफ़ की थी। "कितनी मिठास है चाय में, कितनी बढ़िया है ..." देव के कहे ये शब्द आज भी उसके दिल में मिठास घोल रहे हैं। और ....और उस समय जब उसने अपना कप उठा कर चाय का घूँट भरा था तो वह बिलकुल फ़ीकी थी। .....और, आज.....न जाने कहाँ खो गई वह मिठास। शालिनी सोच रही थी और साथ ही चाय के कप में एक चम्मच शक्कर डाल कर हिलाने लगी।
-मनोज धीमान।