ग़ज़ल /अश्विनी जेतली
चाहा था तुम्हें टूट कर, लेकिन तुम्हीं मेरे ना हुए
और जिन पर तुम फिदा थे वो कभी तेरे ना हुए
सोचता हूं वक़्त ने क्यूं हर वक़्त आज़माया मुझे
जो लम्हें होने थे मेरे, हां वो कभी मेरे ना हुए
मेरे घर में चांदनी का, एक भी टुकड़ा ना गिरा
उजालों ने निभाई दुश्मनी, वो कभी मेरे ना हुए
अपनी वफाओं से उन्हें, कर ना सके कायल कभी
वफ़ा की जिन से आस थी, वो कभी मेरे ना हुए
जिनके आंचल को उम्र भर ख़्वाब में चूमा किए
ग़ैर के दामन से जा लिपटे, वो कभी मेरे ना हुए