रंग दे , मोहे रंग दे अपने रंग में
आखिरी सांसें ले रही महाराष्ट्र की सरकार
-*कमलेश भारतीय
मैं सोचता था कि सुबह जब उठूंगा तो महाराष्ट्र की अघाड़ी सरकार गिर चुकी होगी क्योंकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तो हार मान कर राजपाट वाला आवास छोड़कर मातोश्री लौट चुके हैं जैसे कोई पराजित योद्धा अपने घर लौटता है तो कोई स्वागत् सत्कार करने भी नहीं आता । कोई आरती उतारने भी नहीं आता और कोई जयघोष भी नहीं होता । कुछ ऐसे ही लौटना हुआ उद्धव ठाकरे का मातोश्री में । ऊपर से एकनाथ शिंदे का दावा कि मैं ही असली शिवसेना हूं और भी आहत कर गया । सुना है कि चाणक्य यानी अमित शाह की यही मर्जी है कि शिवसेना को टुकड़े टुकड़े किया जाये जिससे भविष्य में इससे कोई चुनौती ही न बचे महाराष्ट्र में । अभी महाराष्ट्र सरकार आखिरी सांसें ले रही है । जैसे आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखी हो । मरणासन्न । आखिर ऐसी नौबत क्यों आई ? क्या विधायकों की ज्यादा संख्या से ही एकनाथ शिंदे शिवसेना को असली शिवसेना कह सकते हैं ? यह एक संवैधानिक सवाल हो सकता है । आप विधायकों के संख्या बल से सरकार बना सकते हो , मुख्यमंत्री बन सकते हो पर शिवसेना के अध्यक्ष तो नहीं बन सकते । संवैधानिक तौर पर उद्धव ठाकरे ही इसके अध्यक्ष रहेंगे , मेरा मानना तो यह है । इसके बावजूद विधायकों को कभी सूरत तो कभी गुवाहटी ले जाने की कूबत एकनाथ शिंदे में तो नहीं हो सकती । ऊपर से भाजपा कितनी मासूमियत से सारे प्रकरण से पल्ला झाड़कर कह रही है कि हमारा इससे कुछ लेना देना नहीं , तो शिवसेना की अपनी आपसी फूट है । जैसे कभी अरूण जेटली कहा करते थे कि कांग्रेस अपना घर संभाल कर रखती नहीं और दोष भाजपा पर लगा रही है । हम कुछ नहीं कर रहे । जैसे राजस्थान में भी कुछ नहीं किया था । सचिन पायलट के विधायक अपने आप मानेसर आ गये थे और फिर लौट भी गये थे । कुछ नहीं किया था भाजपा ने या कुछ करना चाहते कर नहीं पाई थी । ऐसे ही अभी तक ऊपर ऊपर से इस प्रकरण से दूरी बना रखी है जबकि खेल वहीं से चल रहा है । सब जानते हैं , समझते हैं । कहते हैं कि मातोश्री में सन्नाटा है तो देवेंद्र फडणबीस के साग। धामक बंगले में खुशियां । एकनाथ शिंदे को उद्धव ने न्यौता दिया कि आओ जो कहना है सामने आकर कहो । कहो कि मुख्यमंत्री बनना चाहते हो तो बना देंगे । शरद पवार ने भी यही राय दी है कि एकनाथ को ही मुख्यमंत्री बना दो । पर इतनी सरल तो राजनीति की शतरंज नहीं होती उद्धव और शरद पवार जी और कठपुतलियां कभी फैसले नहीं कर सकतीं । वे तो जैसा नाच नाचने को कहा जाये , वैसा ही नाच दिखा सकती हैं और शिंदे कह रहे हैं कि मुझे कहीं से भी न्यौता नहीं आया -न शिवसेना से और न ही भाजपा से तो फिर इन विधायकों को सिर्फ सूरत और गुवाहाटी दर्शन पर ही लेकर निकले हो भाई?
इस मरणासन्न सरकार को आज या कल तो दम तोड़ना ही है और यह शतरंज का खेल कहीं जाकर तो खत्म होना ही है । यह महाराष्ट्र की सरकार नहीं बल्कि लोकतंत्र ही मरणासन्न है जिस सरकार को जब चाहे तोड़कर अपनी बना लो या जब रहे अगवा विधायकों को भगवा बना लो । यह भी खूब चुटकी है कि अगवा नहीं किये भगवे में रंगे हैं ये विधायक । आगे आगे देखिये लोकतंत्र की कितनी भयावह तस्वीर सामने आती है । जिसे जब चाहे जिस रंग दे दिया जाये और कहा जाये :
रंग दे , मोहे रंग दे ..
-*पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।