अभिलाष अवस्थी द्वारा लिखित उपन्यास "पीपल पर घोंसले नहीं होते" का विमोचन हुआ
मुंबई। बहुमुखी प्रतिभा के धनी वरिष्ठ पत्रकार व विभिन्न अखबारों व पत्रिकाओं के संपादक रह चुके लेखक अभिलाष अवस्थी द्वारा कोरोना पर उपन्यास "पीपल पर घोंसले नहीं होते!"(एक अविस्मरणीय और महान प्रेमगाथा ) मुंबई रिलीज हुआ। जिसका प्रकाशन प्रलेक प्रकाशन द्वारा किया गया है और जिसका मूल्य 300 रुपए है। यह पुस्तक एमेज़न और अन्य साइट पर उपलब्ध है।
उपन्यास "पीपल पर घोंसले नहीं होते!" में मनु और श्रद्धा के प्रेम की। यद्यपि चरित्रों के नामों से यह कथा प्रसाद की 'कामायनी' और कथा में वर्णित प्रेम की उत्कटता व अनन्यता की वजह से धर्मवीर भारती के उपन्यास 'गुनाहों का देवता' की याद दिलाती है, तथापि इस कथा की पृष्ठभूमि एवं परिप्रेक्ष्य उक्त दोनों ही रचनाओं से सर्वथा भिन्न हैं। इन दो कालजयी कृतियों से इस कथा का साम्य मात्र यह है कि उनकी ही तरह यह भी एक प्रेम कथा है।
श्रद्धा एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार की लड़की है और बचपन से ही उसका साथी है घर के सामने वाली फुटपाथ पर स्थित पीपल का एक पेड़ जिससे वह हमेशा अपना सुख-दुख बाँटती है। उसका एक और साथी है मनु, जिसके साथ खेलते हुए वह बड़ी होती है। बचपन का यह पारस्परिक स्नेह युवा होने पर कब उन्हें एक-दूसरे के लिए अपरिहार्य बना देता है, उन्हें पता ही नहीं चलता। मनु और श्रद्धा का प्रेम-संबंध उच्च जाति के करोड़पति कोठारी परिवार को रास नहीं आता है। कोठारी परिवार श्रद्धा से दूर करने के लिए मनु को पढ़ाई के बहाने विदेश भेज देता है। इधर श्रद्धा भी मनु के प्रोत्साहन से मेडिकल प्रवेश परीक्षा में पूरे दिल्ली प्रदेश में टॉप कर M.B.B.S. में दाख़िला ले लेती है। छ: वर्षों बाद जब मनु भारत लौटता है तब वह एयरपोर्ट से पहला फोन श्रद्धा को ही करता है... श्रद्धा जो उस समय तिपहिया ऑटो से ड्यूटी पर अस्पताल जा रही थी, मनु का फोन रिसीव करती है और बताती है कि उसे अस्पताल से अति-आपातकालीन कॉल पर तुरंत बुलाया गया है। फिर श्रद्धा यह कहकर फोन काट देती है कि अस्पताल आ गया है, और हमारे सभी सीनियर डॉक्टर गेट पर ही एकत्र हैं। दूसरी तरफ मनु को भी एयरपोर्ट पर रोक लिया जाता है, और उसके बंगले पर होनेवाली उसकी वेलकम पार्टी भी रद्द कर दी जाती है|
यही वह काला क्षण था जब यह पता चलता है कि कोरोना महामारी अनेक देशों की तरह भारत में भी दस्तक दे चुकी है। विधि की विडंबना देखिए कि जिस मनु को श्रद्धा से दूर रखने के लिए मनु के परिवार ने लाखों साजिशें कीं, वही मनु कोरोना संक्रमित होकर उसी कोरोना वार्ड में भेज दिया गया जिसकी इंचार्ज डाॅक्टर श्रद्धा सरन ही होती हैं। बॉडी शील्ड और मेडिकल कवच में रखे गये मनु को श्रद्धा तीन दिन बाद पहचान पाती है, लेकिन तब तक मनु 'श्रद्धा-श्रद्धा' फुसफुसाते हुए कोमा में चला जाता है | यहाँ से कहानी एक नया मोड़ लेती है। शीर्षक " पीपल पर घोंसले नहीं होते !" पढ़कर ही उपन्यास के प्रति गहरा आकर्षण उत्पन्न होता है और पूरी किताब पढ़ कर समझ आता है शीर्षक का मर्म।
बहरहाल शुरुआती कुछ पृष्ठों में ही कहानी का इंद्रजाल पाठक को अपने प्रभाव में ले लेता है और शीघ्र ही पाठक स्वयं भी कहानी का हिस्सा बन जाता है। लेखक अभिलाष अवस्थी की प्रेक्षण क्षमता अद्भुत है और स्थितियों का यथार्थ एवं जीवंत चित्रण उनकी विशेषता। सहज एवं तरल लेखनी की वजह से पात्रों के आवेगों-संवेगों में डूबता-उतराता पाठक यह वृहद् कथायात्रा कब पूरी कर लेता है पता ही नहीं चलता।
इसे पढ़ने के बाद पूर्व प्रोडक्शन हेड, बालाजी फिल्म व संगीतकार, प्रोड्यूसर, डाइरेक्टर राम अग्निहोत्री ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते है" पिछले 18 सालों में, मैं बहुत सारे टीवी सीरियल और फिल्मों की मेकिंग का मुख्य हिस्सा रहा हूँ । संपूर्ण फिल्म इंडस्ट्री को अच्छी कहानी की तलाश हमेशा रहती है| ' धर्मयुग' जैसी महान पत्रिका के पत्रकार रहे अभिलाष अवस्थी से ऐसी ही मर्मस्पर्शी कहानी की अपेक्षा की जा सकती है... जो साहित्य और फिल्म की कसौटी पर समान रुप से सफल हो|कोरोना पर दुनिया के पहले उपन्यास के रुप में बेहद चर्चित हो रहे उपन्यास " पीपल पर घोंसले नहीं होते! " लेखन जगत की अनूठी और यादगार रचना है| एमेजन और अभिलाष अवस्थी जी को उपन्यास की अपार सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाओं के साथ बहुत-बहुत बधाई बधाई!