हे भगवन
वीना रेखी कि कलम से एक कविता
हे भगवन हे दीन दयाला
क्यों हुए हमसे नाराज
इतना क्रोध कि बंद कर दिए द्वार
तरस गए हम दर्शन को
क्यों बने इतने कठोर
क्या भक्तों बिन दिल लग जाएगा
बिना नोकझोंक रह पाओगे
छोड़ो यह सब नाराजगी
क्षमा करो और खोलो द्वार
थामो फिर से हमारा हाथ
-वीना रेखी
(लेखिका मूल रूप से एक शिक्षाविद हैं।)