अंधविश्वास बनाम तर्क की आढ़ में स्त्रियों की आवाज़ है निर्देशक विजेता दहिया की वेबसीरीज़ 'ओपरी पराई'

हरियाणा में स्त्रियों की दशा किसी से छुपी नहीं है। लैंगिक भेदभाव, ऑनर किलिंग, भ्रूण हत्या, सामाजिक भेदभाव जैसी समस्या अभी भी वहाँ जस की तस देखी जा सकती हैं। कहने को तो आज हरियाणा भी धीरे धीरे तकनीकी और आधुनिक युग मे प्रवेश कर रहा है पर उसमें स्त्रियों के प्रति पुरानी मान्यता और रूढ़िवादिता आज भी एक विरोधाभास है।

अंधविश्वास बनाम तर्क की आढ़ में स्त्रियों की आवाज़ है निर्देशक विजेता दहिया की वेबसीरीज़ 'ओपरी पराई'

हरियाणा में स्त्रियों की दशा किसी से छुपी नहीं है। लैंगिक भेदभाव, ऑनर किलिंग, भ्रूण हत्या, सामाजिक भेदभाव जैसी समस्या अभी भी वहाँ जस की तस देखी जा सकती हैं। कहने को तो आज हरियाणा भी धीरे धीरे तकनीकी और आधुनिक युग मे प्रवेश कर रहा है पर उसमें स्त्रियों के प्रति पुरानी मान्यता और रूढ़िवादिता आज भी एक विरोधाभास है। आज जबकि वर्तमान में यहाँ की कुछ लड़कियाँ खेल जगत, सिनेमा, कला और विज्ञान में अपने हरियाणा और पूरे देश का नाम रोशन कर रही हैं वहीं दूसरी ओर इसकी एक बड़ी स्त्री आबादी अभी भी पुरानी पुरुषवादी कूप मंडूकता के अंधेरे में जीने पर विवश है। एक ऐसी कूप मंडूकता जिससे बाहर निकलने के लिए धीरे धीरे ही सही और आवाज़ें उठने लगी हैं। लड़कियों ने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी शुरु कर दी है।

हरियाणा के निर्देशक विजेता दहिया ने स्टेज एप के लिए वेबसीरीज़ 'ओपरी पराई' का निर्माण किया है। इससे पहले भी विजेता दहिया 'दरारें' फ़िल्म का निर्माण कर चुके हैं जो पारिवारिक रिश्तों पर आधारित खूबसूरत भावनात्मक सफल फ़िल्म कही जा सकती है। ओपरी पराई में मोनिका बनी 'अंजवी' पर किसी अजय दहिया की आत्मा आने आने लगती है। जब यह आत्मा उस पर हावी होती है तो मोनिका अजीबोगरीब हरकतें करने लगती है। मोनिका का पति अजय दहिया का पता लगाने के लिए न केवल उसके गाँव जाता है बल्कि इलाज के लिए झाड़ फूँक भी कराता है। ठीक न होने पर पति और सास मोनिका के पिता और भाई को बुलाते हैं। पिता भाई के साथ मोनिका मायके आ जाती है और यहाँ पर कुछ ऐसा अप्रत्याशित होता है जिसकी कल्पना कोई  नहीं कर पाता है।

"बदल तो लिए लत्ते, इतने साल से पुराने लत्ते में तो था" लत्ते यानी पुरानी जीर्ण शीर्ण रूढ़िवादी मान्यताएं। जिस तरह समय के साथ शरीर के अनुसार वस्त्र की रूप रेखा बदल जाती है उसी तरह समाज की व्यवस्था भी पुरानी पढ़ जाती हैं। मलिन वस्त्र कोई धारण करना नहीं चाहता इसलिए स्त्रियाँ भी अब किसी भी हाल में पुरानी व्यवस्था में जीना नहीं चाहतीं। यह एक संवाद 'ओपरी पराई' वेबसीरीज़ का मूल विषय है। 

हम जानते हैं कि साधारण स्वस्थ जीवन मे दबी हुई इच्छाएं स्वयं को व्यक्त करने का प्रयत्न करती रहती हैं परंतु पारिवारिक और सामाजिक निषेध के कारण ये सहज और स्वाभाविक तौर पर जब व्यक्त नहीं हो पाती तो छद्म और कपट तरीके से ख़ुद को व्यक्त करती हैं। वेबसीरीज़ की नायिका मोनिका की भी दमित इच्छाएं "ओपरा" के रूप में बाहर आती हैं। इसके अलावा एक स्त्री का उसके परिवार के लिए त्याग की भावना, लिंगगत भेदभाव तथा पिता और पति के घर की मर्यादा का बोझ उठाने के बाद भी बदले में परिवार से उपेक्षा और प्रताडना मिलती है तो स्त्री के भीतर दमित इच्छाएं पुरुष और परिवार से बदला लेना शुरु करती हैं। काल्पनिक बीमारियां, ओढ़ी हुई बीमारियां व मानसिक बीमारी इसी का परिणाम है। एक स्त्री के भीतर संचित, दमित क्रोध व सहनशक्ति जब उसके बस के बाहर हो जाती है तब इसकी परिणीति हिस्टीरिया, देवी आने, आसेब या ओपरा की शक्ल में बाहर आती है। मोनिका के भीतर भी जब ओपरा आता है तो उसका रूप भी एकदम बदल जाता है। आवाज़ बदल जाती है एक अलौकिक शक्ति उसमे समाहित हो जाती है। जिसे आत्मा का नाम दिया जाता है। वह आत्मा पड़ोसी गांव के 'अजय दहिया' नाम के एक लड़के होती है। जिसे ऑनर किलिंग में मार दिया जाता है। यह आत्मा मोनिका के अंदर घुस कर तरह तरह के स्वांग करती है। 

दसअसल यह वेबसीरीज़ एक स्त्री जनित  आक्रोश है जो उन पर ओपरीपराई के रूप में आया है। वेबसीरीज़ की नायिका पर जब ओपरा आता है तो वह ऐसा सब कुछ करती है जो वह अपने जीवन मे करना चाहती थी पर पारिवारिक दबाव के चलते कर नहीं पाई। वह घर से बाहर टहलती है, ट्यूबवेल में नहाती है, ठेले पर खड़े होकर ऑमलेट खाती है, साइकिल चलाती है, छत पर खुली हवा में टहलती है, चांदनी रात में पोखर पर जाकर उसके भीतर उतरती है। 

कथानक की दृष्टि से वेबसीरीज़ का टाइटल "ओपरी पराई" एक दम सटीक है।  चूंकि हरियाणवी सिनेमा अपने शैशव काल मे है अतः मुख्यधारा के सिनेमा के मुक़ाबले इसमे धीरे धीरे निखार आ रहा है। कुछ तकनीकी खामियां भी दृष्टिगत होती हैं। जब एक सीरीज़ समाप्त होकर दूसरी शुरु होती है तब लगता है कि कुछ छूट सा गया है। कुछ संवाद या दृश्य यहाँ फिट हो सकता थे। पर आगे के दृश्य छूटे हुए को संभालते से लगते हैं। वेबसीरीज़ में अनेक ऐसे दृश्य हैं जिन्हें भावनात्मक स्तर पर और उकेरे जाने की आवश्यकता है। मसलन नायिका का ससुराल में प्रताड़ित किया जाना, या नायिका का उसके पति द्वारा इग्नोर किया जाना। 

निर्देशक विजेता दहिया ने इस वेबसीरीज़ के माध्यम से अपने समाज के रूढ़िवादिता पर चोट की है। यह लड़ाई एक स्त्री के अधिकारों की नहीं वरन हरियाणा में सदियों से पैर पसारे अंधविश्वास की भी है। अंधविश्वास बनाम तर्क और विज्ञान की है। हमारे समाज की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आज भी मानसिक बीमारियों को पागलपन से जोड़ कर देखा जाता है। जब मोनिका का देवर मोनिका को दिमाग के डॉक्टर के पास ले जाने का सुझाव देता है तब मोनिका की सास को चिंता होती है कि कहीं उसकी बहू पागल तो नहीं है। पति और सास दोनो ही डॉक्टर के पास जाने की बात को टाल देते हैं। शिक्षा का आभाव और अंधविश्वास की प्रधानता जैसी स्थिति आज भी हरियाणा ग्रामीण समाज मे व्याप्त है। यही कारण है कि मोनिका के ससुराल वाले उसके ओपरा की झाड़ फूंक से इलाज कराते हैं वहीं दूसरी ओर उसके मायके में उसके मामा जी शिक्षित और आधुनिक विचार वाले हैं। वह मोनिका को मनोचिकित्सक के पास ले जाते हैं जहाँ मोनिका की असली बीमारी का पता चलता है।

स्टेज एप ने ओपरीपराई वेबसीरीज़ को हॉरर थ्रिलर सस्पेंस की कैटेगरी में रखा है। दो तीन एपिसोड देखने के बाद दर्शकों के मन मे अनेक सवाल कौंधते हैं मसलन- अजय की आत्मा कैसे अपना बदला लेगी? क्या उसके क़ातिल पकड़ें जाएंगे? मोनिका का अजय से कैसे सम्बंध हैं? अजय ने मोनिका को ही क्यों चुना? मोनिका पर आया ओपरा वाकई कोई आत्मा, टोटका है या कोई मानसिक रोग? सवाल अनेक हैं जिसका अंत मे जब जवाब मिल जाता है तो दर्शक हक्के बक्के रह जाते हैं। वेबसीरीज़ का अंत चौकानें वाला है। 

वेबसीरीज़ 'ओपरी पराई' में मूल रूप से सामाजिक विषयों को उठाया गया है। समाज मे रहकर अपने ही समाज को आईना दिखाना स्वयं में बहुत साहस व ज़ोखिम का काम होता है। निर्देशक विजेता दहिया ने हरियाणा समाज मे व्याप्त अशिक्षा, अंधविश्वास, लैंगिक भेदभाव, ऑनर किलिंग, परिवार और समाज मे स्त्रियों की दीन हीन दशा जैसे अहम मुद्दों को इस वेबसीरीज़ में उठाया है जिसके लिए वह बधाई के पात्र है। 

वेबसीरीज़ के सभी पात्रों ने अपने चरित्र के हिसाब से न्याय किया है। मोनिका बनी अंजवी ने पूरी वेबसीरीज़ को उम्दा अदाकारी से बांधे रखा है वहीं दूसरी ओर मोनिका के पिता बने संदीप शर्मा भी अपनी लाजवाब भूमिका में नज़र आए हैं। माता के रोल में संगीता देवी तथा मामा के रोल में रामपाल बल्हारा ने भी ग़ज़ब का अभिनय किया है। अल्पना सुहासिनी ने टिपिकल सास की भूमिका में दृश्यों में जान फूंक दी है। इसके अलावा विजय दहिया तथा बाकी कलाकारों का प्रदर्शन भी अच्छा रहा है। बाल कलाकार अभिनीत सभी दृश्य लाजवाब हैं जो दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करते हैं। आदि के रोल में हयात दहिया, छोटी मोनिका के रोल में अनिका डबास, पिंकू के रोल में वंश दलाल ने बखूबी काम किया है।

चरित्रों के संवाद रोचकता लिए हुए हैं इनमें कभी हास्य का पुट आता है तो कभी विषय की गंभीरता। बाल संवाद दर्शकों के मन को गुदगुदाते हैं। चरित्रों के अनुसार संवाद दर्शकों पर अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं। मोनिका पर जब अजय की आत्मा आती है तब उसके संवाद मोनिका के क्रोध और समाज के प्रति उसके विक्षोभ को उजागर करते हैं। यह वेबसीरीज़ संवाद की दृष्टि से दर्शकों का मनोरंजन करती हैं और कहीं भी बोर नहीं होने देती। वेबसीरीज़ में मोनिका के सीन पर बजता बैंक ग्राउंड म्यूज़िक एक अलग ही फैंटेसी की दुनिया मे ले जाता है। मोनिका को भी और दर्शकों को भी। 

कुल मिलाकर इस वेबसीरीज़ में अंधविश्वास बनाम तर्क विज्ञान दोनों पक्षों को दिखाया गया है अंत मे अंधविश्वास को भेद कर किस प्रकार से तर्क विज्ञान की जीत होती है इसके लिए ओपरी पराई वेबसीरीज़ को ज़रूर देखा जाना चाहिए।


- डॉ तबस्सुम जहां