बेटियों से जुड़ी मेरी लघुकथाएं/कमलेश भारतीय
फासला
-अजी सुनते हो ?
-हूं , कहो ।
-आपकी बहन का संदेश आया है ।
-क्या ?
-वही पुराना राग गाया है ।
-यानी ?
-रक्षाबंधन का त्यौहार आ रहा है । आकर मिल जाओ ।
-अब शादी को इतने वर्ष हो गये । पर यह त्यौहारों पर आकर मिलने का संदेश अभी तक मिल रहा है ।
-चलो , जहां इतने वर्ष किया है , वहां इस वर्ष भी कुछ भेंट , उपहार दे आओ ।
-एक बात बताओगी ?
-पूछिए ।
-कभी हम अपनी बहन को मिलने बिना उपहार के गये हैं ?
-नहीं ।
- हम भाई-बहन दूर तो नहीं रहते पर उपहारों ने फासला इतना बढा दिया कि चाह कर भी मिलने नहीं जा सकते । कभी बहन का खुश चेहरा देख पाएंगे या यह हसरत ही रह जाएगी ?
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जन्मदिन
छोटे भाई की छोटी बेटी मन्नू हमारे पास आई हुई थी । एक सुबह नाश्ते पर कहने ली - बड़ी मां , मेरी एक बात सुनेगी ?
-कहो बेटे । कहो । पत्नी ने पुचकारते हुए कहा ।
-आज मेरा जन्मदिन है । मनाओगी ?
बड़ी बड़ी आंखों से मन्नू ने बड़ा सवाल किया ।
-मनायेंगे । मनायेंगे क्यों नहीं ?
पत्नी ने चहकते हुए कहा ।
-केक बनवायेंगे ?
-हां । हां । बेटी क्यों नहीं ?
-मोमबत्तियां जलायेंगे ? कुछ मेहमान भी बुलायेंगै ?
-हां । बेटी । हां ।
-गिफ्ट भी मिलेंगे ?
- हां । बेटी । पर तुझे शक क्यों हो रहा है ?
-बड़ी मां । मेरा जन्मदिन कभी नहीं मनाया जाता ।इसलिए । डैडी मेरे भाई का जन्मदिन तो धूमधाम से मनाते हैं पर मेरा जन्मदिन भूल जाते हैं । आप कितनी अच्छी हैं । मेरी प्यारी अम्मा ।
मेरी पत्नी की आंखों में आंसू थे और वह कह रही थी कि बेटी तू हर साल आया कर । हम तेरा जन्मदिन मनाया करेंगे ।
मन्नू की आंखों में आंसू इन्द्रधनुष के रंगों में बदल गये थे ।
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परंपरा
-मां , इस लोहे की पेटी को रोज रोज क्यों खोलती हो ?
- तेरी खातिर । मेरी प्यारी बच्ची ।
- मेरी खातिर ?
- तू नहीं समझेगी ।
-बता न मां ।
- जब मैं छोटी थी मेरी मां भी पेटी खोलती और बंद करती रहती थी । तब मैं भी नहीं जानती थी । क्यों ?
-मैं देखती रहती हूं कि जैसा दहेज मेरी मां ने मुझे दिया था , वैसा ही मैं तेरे लिए जुटा भी पाऊंगी ।
- छोड़ो न मां । मैं ब्याह ही नहीं करवाऊंगी ।
- मैं भी यही कहती थी पर शादी और दहेज एक दूसरे से जुड़े हुए हैं कि इन्हें अलग करना मुश्किल है । मैं क्या करूं ?
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नामकरण
कच्चे घर में जब दूसरी बार भी कन्या ने जन्म लिया तब चंदरभान घुटनों में सिर देकर दरवाजे की दहलीज बैठ गया । बच्ची की किलकारियां सुनकर पड़ोसी ने खिड़की में से झांक कर पूछा -ऐ चंदरभान का खबर ए ,,,?
-देवी प्रगट भई इस बार भी ।
-चलो हौंसला रखो ।
-हां , हौसला इ तो रखेंगे बीस बरस तक । कौन आज ही डिग्री की रकम मांगी गयी है । डिग्री ही तो आई है । कुर्की जब्ती के ऑर्डर तो नहीं ।
-नाम का रखोगे ?
-लो । गरीब की लड़की का भी नाम होवे है का ? जिसने जो पुकार लिया सोई नाम हो गया । होती किसी अमीर की लड़की तो संभाल संभाल कर रखते और पुकार लेते ब्लैक मनी ।
दोनों इस नाम पर काफी देर तक हो हो करते हंसते रहे । भूल गये कि जच्चा बच्चा की खबर सुध लेनी चाहिए ।
पड़ोसी ने खिड़की बंद करने से पहले जैसे मनुहार करते हुए कहा -ऐ चंदरभान, कुछ तो नाम रखोगे इ । बताओ का रखोगे?
-देख यार, इस देवी के भाग से हाथ में बरकत रही तो इसका नाम होगा लक्ष्मी । और अगर यह कच्चा घर भी टूटने फूटने लगा तो इसका नाम होगा कुलच्छनी ।
पड़ोसी ने ऐसे नामकरण की उम्मी द नहीं की थी । झट से खिड़की के दोनों पट आपस में टकराये और बंद हो गये ।
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