कमलेश भारतीय की राजनीति पर लघुकथाएं
कारण
प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जिस भव्यता, महानता और उदारता के साथ किसी दूर दराज के पिछडे क्षेत्र में स्कूल का शिलान्यास किया व बालकों के उज्ज्वल भविष्य का आश्वासन दिलाया, उसके एकदम उलट वे राजधानी लौटकर सब कुछ भूल गये ।
पिछड़े क्षेत्र में ज्ञान का दीप प्रज्जवलित करने की बजाय खामोश हो गये और शिक्षा मंत्रालय को आदेश दे दिया कि आगे कोई कार्यवाही न की जाए । इस स्कूल को कागजों में ही चलने दिया जाए । असल में नहीं । इस पर शिक्षा मंत्री ने कारण पूछा तो उसे गुप्त मीटिंग पर बुलाया । समझाते हुए बोले -भलेमानस , अगर पिछड़े क्षेत्रों के लोग भी पढ़ लिख गये तो सब सूझवान हो जायेंगे । फिर खुद ही सोचो हमें वोट कौन देगा ?
इस अकाट्य तर्क पर शिक्षा मंत्री तो बेचारे मुख्यमंत्री की ओर मुंह खोले अवाक् ताकते ही रह गये
अपने आदमी
यह तीसरी बार हो रहा था ।
मैंने तीसरी बार किसी लड़के को नकल करते पकड़ा था औ, बदकिस्मती से वह भी किसी मास्टर, का अपना आदमी निकल आया था । मुझे फिर ठंडी चेतावनी ही मिली थी ।
पहली बार हैड का लड़का ही मेरी पकड़ में आ गया था । जब मैं उसे किसी विजयी भावना में लिए जा रहा था तो पीठ पीछे सभी साथी मुस्कुरा रहे थे । नया होने की वजह से मुझे किसी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था । और वे जानते बूझते मुस्कुरा रहे थे । हैड ने उसे यह कह कर छोड़ दिया था कि अपना शरारती बेटा है , आपसे मज़ाक कर रहा होगा ।
दूसरी बार मैंने फिर ईमानदारी से ड्यूटी करते हुए एक लड़के को रंगे हाथों नकल करते लपका था । उसकी वजह से मुझे उस प्राइवेट स्कूल के मैनेजर का सामना करना पड़ा था । वह उनका सुपुत्र जो था और मुझे नौकरी करनी थी ।
तीसरी बार खेल प्रशिक्षक भागे चले आए थे और मेरे कंधे पर आत्मीयता का भाव लादते हुए बता गये थे कि वह स्कूल का श्रेष्ठ खिलाड़ी है ।
अब मैंने कातर दृष्टि से अपने आसपास देखना शुरू कर दिया है कि जिससे मुझे मालूम हो जाये कि अपने आदमी कहां नहीं हैं ,,,
तब से मैं एक भी आदमी पर उंगली नहीं रख पाया हूं ,,,
राजनीति के कान
- मंत्री जी , बड़ा कहर ढाया है ,,,आपने ।
-किस मामले में भाई?
- अपने इलाके के एक मास्टर की ट्रांस्फर करके ।
-अरे , वह मास्टर ? वह तो विरोधी पार्टी के लिए भागदौड़,,,
-क्या कहते हैं हुजूर ?
- उस पर यही इल्जाम है ।
- ज़रा चल कर कार तक पहुंचने का कष्ट करेंगे?
- क्यों ?
- अपनी आंखों से उस मास्टर को देख लीजिए । जो चल कर आप तक तो पहुंच नहीं पाया । बदकिस्मती से उसकी दोनों टांगें बेकार हैं । और भागदौड़ करना उसके बस की बात कहां ? जो अपने लिए भागदौड़ नहीं कर सकता , वह किसी के विरोध में क्या भागदौड़ करेगा ?
- अच्छा भाई । तुम तो जानते हो कि राजनीति के कान बहुत कच्चे होते हैं और आंखें तो होती ही नहीं । खैर । आपने कहा है तो मैं इस गलती को दुरुस्त करवा दूंगा ।
खिसियाए हुए मंत्री जी ने कहा जरूर लेकिन आंखों में कहीं पछतावा नहीं था ।