कहानी/अगला शिकार

कहानी/अगला शिकार
कमलेश भारतीय।

-कमलेश भारतीय 
मैं जहां था , वहीं पत्थर की मानिंद जम कर रह गया । 
-मेरे ट्रांस्फर के ऑर्डर आ गये हैं । 
प्रिंसिपल बैंस ने इतने धीमे सुर में बताया कि दीवारें सुन न सकें जबकि दीवारें हंस रही थीं क्योंकि बात स्कूल की चारदीवारी से निकल कर गांव भर में फैल चुकी थी कि प्रिंसिपल बैंस की ट्रास्फर के ऑर्डर आज या कल आने वाले हैं । आज वह बात सच हुई थी । 
मैं खामोश खड़ा रहा । प्रिंसिपल बैंस ने मुझे आंखों से कुर्सी पर बैठने का इशारा किया ।
-अब यहां से विदा होना ही बेहतर है । उन्होंने भरे गले से कहा । 
-नहीं । हमें वक्त बर्बाद किए बिना राजधानी पहुंचना चाहिए । 
-राजधानी ? पत्थरों का शहर है । वहां हमारी आवाज़ कोई नहीं सुनेगा । फिर एक बार वहां हो तो आए हैं । नतीजा सामने है । 
-फिर भी एक और कोशिश ,,,,
-मुझे अच्छा नहीं लगता मंत्रियों के दरवाजों पर भिखमंगों की तरह ,,,,
-आप अपना हक मांग रहे हैं , भीख नहीं ।
-हक एक बार मांगा जाता है , भीख तो ठुकरा देने पर भी बार बार मांगी जाती है । शिक्षाम॔त्री ने हमारी प्रार्थना ठुकरा दी । अब जाना भिखमंगों के समान होगा । 
-आपने स्कूल के लिए इतना किया ,,,
-सरकार मुझे वेतन देती रही ।
प्रिंसिपल बैंस मुस्कुराये जरूर पर उसमें असर न था । 
-आपके बिना यह स्कूल शमशान में बदल जायेगा ।
-नहीं । ऐसा नहीं कहते । इसे अब आप लोग संभालना ।
-आपके आने से पहले भी क्या था ?
-,जाने के बाद तो अच्छा रखोगे ? आपने मेरे लिए बहुत भाग दौड़ की । इसके लिए ,,,,
तभी चपरासी संतोखा अंदर  आ गया । स्कूल का जोकर । जब कभी दिल न लगता तभी प्रिंसिपल बैंस उसे बुला कर पूछते -सुनाओ संतोखे , आज मौसम कैसा रहेगा ? संतोखे को स्कूल का मौसम विभाग कहा जाता ।
दरअसल सरकारी स्कूलों की इमारतें पूरी न होने की वजह से मौसम छुट्टियों की बरसात कर देता , प्रिंसिपल बैंस नये नये आए थे कि बादल गरजने के साथ ही संतोखा छुट्टी की आस लगाये उनके पास पहुंच गया था । उस दिन से उन्होंने संतोखे को मौसम विभाग कहना शुरू कर दिया था । जब कभी गर्मी से बच्चे हाल बेहाल होने लगते या बरसात के छींटे पड़ते तभी अध्यापक संतोखे को उकसाते कि जा जाकर मौसम की खबर दे दे । बच्चे भी ऐसे किसी दिन रजिस्टर लिए संतोखे को आते देख छुट्टी का अनुमान लगा तालियां पीटने लगते ।  
-संतोखे, गला कुछ सूख रहा है । 
-मौसम कहता है पानी पियो जी । 
-पिलाओ फिर मुझे और सरीन साहब को । 
-अभी लाया जी । 
संतोखा जग और गिलास लेकर नल की ओर दौड़ा ।।
-संतोखे, अब तुम्हारे नये साहब आयेंगे । पानी का गिलास थामते हुए प्रिसिंपल बैंस ने जैसे घोषणा कर दी अपनी ट्रांस्फर की ।
-क्यों मज़ाक करते हैं साहब ? मौसम तो बिल्कुल ठीक है । 
-मौसम तो कभी का बिगड़ चुका था ।तुम्हें खबर ही नहीं हुई । 
-छोड़िए भी । जा संतोखे । कुछ नहीं हुआ । 
संतोखा जग गिलास लेकर ही ही करता चला गया । 
मौसम बिगड़ने की खबर खुद मिस्टर बैंस ने मुझे विशेष तौर पर बुला कर दी थी । 
-विधायक महोदय मुझसे नाराज़ हैं ,,,,मिस्टर सरीन । 
-क्यों ? वे तो हमारे समारोह में आए थे और,,आपकी तारीफ कर रहे थे ।
-अब नहीं करते । यही जानने के लिए आपको उनके पास भेज रहा हूं । 
विधायक महोदय जी हुजूरियों से घिरे  हुए थे और जो कुछ वो उनके कानों मे कह रहे थे उसे सुन कर मुस्कुरा रहे थे । खैरियत रही कि उन्होंने मुझे पहचान लिया । 
- हमारे प्रिंसिपल साहब आपके दर्शन करना चाहते हैं । 
-मैं उससे मिलना नहीं चाहता । 
-शायद आप उनसे ज्यादा खफा हैं ।
-जाहिर है ।
-कारण बता सकते हैं , हुजूर ?
-तुम्हारा प्रिंसिपल स्कूल भवन को लेकर इतना चिंतित है कि विरोधी पार्टी के पास गया था । किसी बैठक में ,,,,
-कार्यवाही रजिस्टर ला देता हूं । वे नहीं गये थे ।
-नहीं गया तो न सही । तुम्हारा प्रिंसिपल हमारा सगा नहीं है । विरोधी की गोद में जा बैठा है । 
चमचे ही ही करके उठे । मै मुंह खोले अवाक् ताकता रह गया । हिम्मत बटोर कर पूछ ही लिया -यह आप क्या कह रहे हैं ?
-मैं ठीक कह रहा हूं । उसे जाकर विरोधी पार्टी को बता देना चाहिए था कि अभी विधायक महोदय जिंदा हैं । स्कूल की फिक्र करने की करने की उनके सिवाय किसी को कोई जरूरत नहीं । 
-पर स्कूल तो सबके सांझे होते हैं । चंदा कोई भी दे सकता है , हुजूर । 
-बहस न करो । तुम अपने हो । 
एकाएक बिजली कड़की थी । अपने तो प्रिंसिपल भी थे । आकाशवाणी की तरह मन ही मन आवाज़ गूंजी-चमचे बन जाओ । फिर उनके घुटनों में टिका कर अभयदान ले लो । 
-हुजूर । अपना हाथ मेरे सिर पर रखना । 
मैं बड़ी मुश्किल से इतना कह कर चला आया था । प्रिंसिपल बैंस को लौटकर सब कुछ बता दिया था । 
-अब क्या किया जाये ? 
-हमें शिक्षा मंत्री से मिलना चाहिए । 
-अकेले ? 
-नहीं । किसी असर रसूख आदमी को साथ लेकर । 
-आप ही सोचिए । मुझे तो कुछ सूझ नहीं रहा । 
-मिस्टर बंसल कैसे रहेंगे ? 
-थोड़ी अक्खड़ तबीयत के हैं । 
-अक्खड़ ही टक्कर ले सकते हैं । सर । चुनाव में विधायक को इन्होंने ही परेशान किया था । एक ही सांस में मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री तक अपनी निकटता के सैंकड़ों किस्से सुना देते हैं । 
-मिल सकेंगे इस वक्त ? 
-जायेंगे कहां ? अपने कारखाने में ही होंगे । 
-चलें फिर ? 
-चलिए ।
,,,,,,,,,,,
उस दिन उदास धूप में फक चेहरा लिए प्रिंसिपल बैंस जब अपने दफ्तर से निकले तब अपने लम्बे कद के बावजूद आने वाली मुसीबत के सामने एकदम बौने से दिखाई पड़ रहे थे । 
शायद असरदार आदमी अपने द्वार पर किसी की आहट सुनते ही फोन के चोगे को उठा कर कानों पर लगा व्यस्तता का ढोंग रचते हैं । माउथ पीस पर हाथ रखे , कुर्सियों पर बिठाना अतिशय कृतज्ञता में शामिल रहता है । यही हमारे साथ हुआ । 
हमने बिना भूमिका के अपना दुखड़ा न केवल रो कर सुना दिया बल्कि उन्हें राजधानी चलने के लिए मना भी लिया । बात सुनते ही उनकी आंखों में आग बरसने लगी और होंठों पर शरारती मुस्कान तैरने लगी । अपने विरोधी से बदला लेने , उसे नीचा दिखाने का उन्हें सुअवसर जो मिल रहा था । 
-ऐसी की तैसी । और क्या सुनना है ? इस विधायक के कई कांड मेरे पास इकट्ठे हो गये हैं । बाल धूप में सफेद नहीं हुए मेरे,,,,इसका और इसके आदमियों का यही शगल हैं । 
-क्या ?
-जब विधायक के खास आदमियों को प्रिंसिपल बैंस जैसा शरीफ परिंदा पसंद नहीं आता तब वे आरोप पत्र तैयार करते हैं और उस पर रिश्तेदारों , नौकरों चाकरों और मुंहलगों के अंगूठे छाप कर संबंधित मंत्री को पेश कर अर्ज करते हैं -हुजूर । हमें इस सरकारी परिंदे की जरूरत नहीं है । यह परिंदा हमारी हां में हां नहीं मिलाता । इसलिए हम इसकी सूरत देखना भी पसंद नहीं करते । और लो , मंत्री जी उसी वक्त शिकार कर डालते हैं और भोला पंछी गोली से तड़पता घायल हो जाता है । समझे कुछ ?
अपनी समझदारी का सबूत देते मिस्टर बंसल ने अपनी मूंछों को सहलाया था , जैसे कोई मुर्गा लड़ाने से पहले उसे पुचकारता है । मिस्टर बंसल की मूंछें भी तो विधायक की मूंछों से भिड़ने जा रही थीं । 
सचिवालय के बाहर भीड़ देखकर मैं चौंका । सहमा कि इतने लोग सियासत के मारे यहां चक्कर लगा रहे हैं ? 
चिट भेजी , बुलावा आया । 
कालीन बिछे थे । रंगीन परदे लहरा रहे थे । कुर्सियां चमचमा रही थीं । फोन यहां भी स्वागत् की भूमिका निभा रहे थे ।
शिक्षा मंत्री की आंखें कहीं खोई हुई थीं । सिर्फ उनके कान हमारी तरफ थे । बगुले भगत की फोटो बचपन में किसी किताब में देखी थी । वह जाने कैसे आंखों में उतर आई । कभी मंत्री जी वैसे दिखाई देने लगते तो कभी बगुला भगत ही मंत्री की कुर्सी पर विराजमान दिखाई देता । मिस्टर बंसल की सारी भाषणबाजी का उनके पास एक ही जवाब था-विधायक से मिलो । उसे साथ लाओ ।
-विधायक के कान गलत लोगों ने भर दिए हैं और प्रिंसिपल बैंस के खिलाफ लोगों ने भड़का दिया है ।
-मैंने तो सुना है कि प्रिंसिपल बैंस ही विधायक के खिलाफ लोगों को भड़का रहे थे । 
शिक्षा मंत्री ने तुरूप का पत्ता फेंका । 
-अगर लायक लोगों को अच्छा काम करने के बदले ऐसे ही सज़ा मिलती रही तो स्कूलों में पढ़ायेगा कौन ? सब विधायकों की खुशामद करते मिलेंगे ।
-क्या खूबी है इनमें? 
शिक्षा मंत्री ने जैसे ललकारा । 
-राज्य पर शिक्षा की जिम्मेदारी है । पर गांवों में स्कूलों के लिए इमारतें कहां हैं ? यह सब हमारे यहां मिस्टर बैंस की हिम्मत से हुआ । इसी सिलसिले में चंदा इकट्ठा कर रहे थे । इमारत कुछ बन गयी है । बिजली लगवा दी है । पंखे चलते हैं और अब मौसम की वजह से छुट्टी नहीं करनी पड़ती और आपकी सरकार इन्हें विदेश भेज चुकी है । वहां भी इनाम मिला । 
-ऐसा ?
-इस आदमी के लिए स्कूल ही मक्का , स्कूल  ही काशी । हर हाल में  इन्हें इसी स्कूल में रखा जाये ताकि जो काम शुरू किया है , उसे ,,,,,,
-प्रिंसिपल बैंस को दूसरे स्कूलों में भी जाना चाहिए । 
-माथे पर कलंक लेकर ? 
-नहीं । एक आदर्श के रूप में ।
-बेसिर पैर के आरोपों के बावजूद ट्रांस्फर ? 
-अगर विधायक को मना लें तो रुक सकती है ।  
शिक्षा मंत्री ने दो टूक फैसला सुनाया । 
-उनके कान गलत लोगों ने भर रखे हैं । 
-आप सही लोग उनके कान खोल सकते हैं । मैं कब मना करता हूं ? मेरी इनसे कोई दुश्मनी थोड़े है ।
 - पर उनके खास आदमियों के मुंह बंद नहीं कर सकते । बहुमत का अंधा है विधायक ।
-मिस्टर बंसल । 
-कहिए ।
-आप मिस्टर बैंस का ट्रांस्फर, हो जाने दीजिए । 
-यह आप क्या कह रहे हैं ? एक शिक्षा मंत्री होकर ?
-ट्रांस्फर न हुआ तो कल कोई बड़ा इल्जाम भी लग सकता है । किसी बड़े इल्जाम में , किसी और जाल में फंसने से बेहतर है चुपचाप ट्रांस्फर हो जाना । मैं इतना करूंगा कि इनका ट्रांस्फर ठीक जगह हो जाये । आपका इतना मान तो ,,,,
-थैंक्यू ।
तब लगा था कि खट खट करती हुईं टाइप मशीनें सचिवालय भर में एक ही ऑर्डर टाइप किए जा रही हैं ,,,,, -प्रिंसिपल बैंस को ट्रांस्फर किया जाता है । 
मिस्टर बंसल के साथ मैं और प्रिंसिपल बैंस मुर्दा कदमों के साथ सीढ़ियां उतरने लगे हैं । 
-विधायक को ,,,,,सियासी आदमी को तालीम से क्या मतलब ? खुद चार अक्षर पेट में हैं कि नहीं , प्रिसिपलों से चमचागिरी की उम्मीदें ,,,,? 
मिस्टर बंसल ने घायल मूंछों को सहलाते हुए कहा हार की खीझ उतारने के लिए । 
मेरे होठों पर मुस्कान आते आते रह गयी । कह नहीं सकता था कि मिस्टर बंसल आप कौन हैं ? फर्क सिर्फ इतना है कि सियासत आपका शौक है और विधायक का पेशा । कह यह भी नहीं सकता था कि सियासत में दखल रखने वाला एक आदमी ट्रांस्फर करवाता है तो दूसरा उसे रद्द करवाने चल देता है । कभी ट्रांस्फर करवाने वाले की जीत होती है तो कभी रुकवाने वाले की । असल में जीत बार जीत हर बार राजनीति की होती है । हम नौकरीपेशा तो कठपुतलियों हैं जिसके मन में जैसा आता है वैसा नाच हमें नचाता है । हम सिर्फ मोहरे हैं ,,,,,और उनकी चलाई चालों पर आगे पीछे होते रहते हैं । 
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घंटी बजते बजते सारा स्टाफ इकट्ठा होकर चला आया ।
-सर , संतोखे ने जो बताया है,,,,,कह दीजिए वह मज़ाक है ,,,,,
-हां । एक अर्थ में मज़ाक है ,,,,एक क्रूर मज़ाक । कभी इस देश में राजगुरु राजा बनाते थे । अब वे गुरुओं को पढ़ाते हैं । सिखाते हैं कि सिर झुका कर सलाम कहने का गुर । संतोखे ने मेरी बात ही आप लोगों को कही है । मैं आप लोगों से बिछुड़ रहा हूं ।।
-सर काम करने का फायदा क्या है ? 
किसी एक ने तीखे स्वर में पूछा । 
-बस । राजनेताओं की आरती उतारते रहो ।
 किसी दूसरे ने जवाब भी दे दिया ।
-इस तरह एक विधायक कब तक हमारा शिकार करता रहेगा? 
-तुम मेरे दोस्त हो । मैं तुम लोगों को डराना नहीं चाहता । जाने से पहले होशियार जरूर कर देना चाहता हूं । इतना ख्याल रखियेगा कि अगला शिकार आप लोगों में से ही कोई एक होगा ।।
प्रिंसिपल बैंस की बात सुनते ही सबकी आंखें फटी की फटी रह गयीं । एकाएक मुझे सचिवालय में उनके साथ जाना जुर्म लगने लगा और यह भी कहीं विधायक महोदय तक यह खबर पहुंच गयी तो,,,,,
उनका अगला शिकार कहीं मैं ही तो नहीं ???