हरियाणा की लोक सांस्कृतिक विरासत का इतिहास हजारों वर्ष पुरानाः प्रो. महासिंह पूनिया
‘हरियाणा की लोक सांस्कृतिक विरासत’ पर व्याख्यान आयोजित।
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रोहतक, गिरीश सैनी। हरियाणा की लोक सांस्कृतिक विरासत का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। यह उद्गार कुरुक्षेत्र विवि के इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड एंड ऑनर्स स्टडीज के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. महासिंह पूनिया ने एमडीयू के सेंटर फॉर हरियाणा स्टडीज में संस्कृत, हिंदी व संगीत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘हरियाणा की लोक सांस्कृतिक विरासत’ नामक विषय पर आयोजित व्याख्यान के दौरान कहे।
प्रो. महासिंह पूनिया ने कहा कि हरियाणा की संस्कृति बेहद पुरानी व समृद्ध रही है। हरियाणा वह क्षेत्र है, जहाँ सरस्वती नदी के किनारे वैदिक सभ्यता की शुरुआत हुई और वह विकसित हुई। यहीं पर वेदों की रचना भी हुई। हरियाणा का 5000 साल पुराना इतिहास गौरव से भरा हुआ है। हरियाणा की धर्मस्थली कहे जाने वाले कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध की शुरुआत में भगवत गीता का उपदेश दिया था। इसी धरती पर संत वेदव्यास ने संस्कृत में महाभारत लिखी थी। महाभारत युद्ध से पहले सरस्वती घाटी के कुरुक्षेत्र क्षेत्र में दस राजाओं का युद्ध हुआ था। लेकिन यह महाभारत युद्ध था, जो लगभग 900 ईसा पूर्व में हुआ था, जिसने इस क्षेत्र को दुनिया भर में प्रसिद्धि दिलाई। उन्होंने कहा कि महाभारत में हरियाणा को बहुधान्यक, यानी भरपूर अनाज और बहुधान की भूमि से उल्लेखित किया गया है। हरियाना शब्द दिल्ली संग्रहालय में रखे 1328 ई. के संस्कृत शिलालेख में मिलता है, जिसमें हरियाणा क्षेत्र को धरती का स्वर्ग बताया गया है।
प्रो. पूनिया ने कहा कि हरियाणा में विभिन्न पुरातत्व स्थलों जैसे भिवानी में नौरंगाबाद और मित्ताथल, फतेहाबाद में कुणाल, हिसार के पास अग्रोहा, जींद में राखीगढ़ी (राखीगढ़ी), रूखी (रोहतक) और सिरसा में बनवाली में खुदाई से पूर्व-हड़प्पा और हड़प्पा संस्कृति के प्रमाण मिले हैं। उन्होंने कहा कि पिहोवा, कुरुक्षेत्र, तिलपत और पानीपत में मिट्टी के बर्तन, मूर्तिकला और आभूषणों की खोज से महाभारत युद्ध की प्राचीनता का ज्ञान होता है। महाभारत में इन स्थानों का उल्लेख पृथुदक (पेहोवा), तिलप्रस्थ (तिलपुट), पानप्रस्थ (पानीपत) और सोनप्रस्थ (सोनीपत) के रूप में किया गया है। उन्होंने कहा कि हरियाणा की लोक संस्कृति, लोक परिधान, रहन-सहन, खान-पान, ग्रामीण काम-धन्धे, कृषि परम्परा व पगड़ी का इतिहास बहुत ही प्राचीन और समृद्ध रहा है जिस पर सभी हरियाणावासी गर्व कर सकते हैं। इससे पूर्व सेंटर फॉर हरियाणा स्टडीज के निदेशक प्रो.एसएस चाहर ने प्रो. महासिंह पूनिया का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत व सम्मानित किया। इस दौरान प्रो सुरेंदर कुमार, प्रो. कृष्णा, डॉ. श्री भगवान, प्रो. पुष्पा, डॉ रवि प्रभात, डॉ सुषमा नारा, डॉ. अनिल कुमार सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति व शिक्षक तथा संस्कृत, हिंदी व संगीत विभाग के विद्यार्थी मौजूद रहे।